SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७५६ ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [अष्टादशाध्ययनम् ____ मूलार्थ-नरेश्वर अरनामा चक्रवर्ती, सागर पर्यन्त पृथिवी और भारतवर्ष को छोड़कर विषय विकार से रहित होकर-अथवा कर्मरज से रहित होकर मोक्षगति को प्राप्त हो गया। टीका-सातवें चक्रवर्ती अरनाथ के नाम से प्रसिद्ध थे। वे चक्रवर्ती की पदवी को भोगकर समुद्रपर्यन्त पृथिवी के साम्राज्य का परित्याग करके तीर्थंकर पद को प्राप्त करते हुए सर्वोत्तम मोक्षपद को प्राप्त हुए । तात्पर्य कि विषय कषायों से सर्वथा मुक्त होकर केवलज्ञान को प्राप्त करके संसार में धर्म का शासन चलाते हुए परम कल्याणरूप निर्वाणपद को प्राप्त हुए। ये तीर्थंकरों में उन्नीसवें तीर्थंकर और चक्रवर्तियों में सातवें चक्रवर्ती हुए हैं । इसलिये ये उक्त दोनों ही शुभ नामों से स्मरण किये जाते हैं । इसके अतिरिक्त प्रस्तुत गाथा के पूर्वार्द्ध को अन्यवृत्तिकारों ने इस प्रकार पढ़ा है यथा—'सागरंतं चइत्ताणं भरहं नरवरीसरों'। ___अब नवमें चक्रवर्ती के सम्बन्ध में कहते हैं यथाचइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महडिओ। चिच्चा य उत्तमे भोए, महापउमे तवं चरे ॥४१॥ त्यक्त्वा भारतं वर्ष, चक्रवर्ती महर्द्धिकः । त्यक्त्वा च उत्तमान् भोगान् , महापद्मस्तपोऽचरत् ॥४१॥ पदार्थान्वयः-चइत्ता-छोड़कर भारहं वासं-भारतवर्ष को चक्कवट्टी-चक्रवर्ती महडिओ-महती ऋद्धि वाला य-फिर चिच्चा-छोड़कर उत्तमे-उत्तम भोए-भोगों को महापउमो-महापद्म तवं-तपश्चर्या चरे-आचरता हुआ। .. मूलार्थ-भारतवर्ष के राज्य को छोड़कर महती समृद्धि वाला, महापद्म नामक चक्रवर्ती, उत्तम भोगों का परित्याग करके तप का आचरण करता हुआ मुक्त हो गया। टीका-यद्यपि सातवें चक्रवर्ती के पश्चात् अनुक्रम से आठवें चक्रवर्ती का वर्णन आना चाहिये था, परन्तु संभूत नामा आठवें चक्रवर्ती का वर्णन इसलिए छोड़ दिया गया है कि वह संसार से विरक्त नहीं हुआ किन्तु संसार के विषयभोगों में
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy