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________________ [५८५ चतुर्दशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । पियपुत्तगा दोन्नि विमाहणस्स, . सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स । सरित्तु पोराणिय तत्थ जाई, . तहा सुचिण्णं तवसंजमं च ॥५॥ प्रियपुत्रको द्वावपि ब्राह्मणस्य, स्वकर्मशीलस्य पुरोहितस्य । स्मृत्वा पौराणिकीं तत्र जाति, तथा सुचीर्णं तपः संयमं च ॥५॥ ते कामभोगेसु असज्जमाणा, माणुस्सएसुं जे यावि दिव्वा । मोक्खाभिकंखी अभिजायसड़ा, तातं उवागम्म इमं उदाहु ॥६॥ तौ .. कामभोगेष्वसजन्तौ, मानुष्यकेषु ये चापि दिव्याः । मोक्षाभिकाक्षिणावभिजातश्रद्धौ, तातमुपागम्येदमुदाहरताम् ॥६॥ ... पदार्थान्वयः-पियपुत्तगा-प्रिय पुत्र दोन्नि वि-दोनों ही माहणस्सब्राह्मण के सकम्मसीलस्स-स्वकर्मनिष्ठ पुरोहियस्स-पुरोहित के सरित्तु-स्मरण करके पोराणिय-पुराणी तत्थ-वहां पर जाई-जाति को तहा-उसी प्रकार सुचिएणंअर्जित किया हुआ तव-तप च-और संजमं-संयम को । ते-वे दोनों कुमार कामभोगेसु-काम भोगों में असज्जमाणा-असक्त हुए माणुस्सएमुं-मनुष्यसम्बन्धी
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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