SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टादशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [७४१ प्रकार आत्मा में सर्वदा कर्तृत्व का मानना भी युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि यदि उसमें सर्वदा क्रियाशीलता स्वीकार की जाय तो मोक्ष का ही अभाव हो जायगा। (२) अक्रियावादी लोग आत्मा में क्रिया का अस्तित्व स्वीकार नहीं करते परन्तु उनका यह मन्तव्य प्रत्यक्षविरुद्ध है क्योंकि आत्मा की क्रियाशीलता प्रत्यक्षसिद्ध है । (३) विनयवादी लोग विनय को ही सर्वरूप से प्रधानता देते हैं। उनके मत में 'सब की विनय करना' यही धर्म है। परन्तु यह कथन भी कुछ सुन्दर प्रतीत नहीं होता क्योंकि इसमें योग्यायोग्य की परीक्षा को कोई स्थान उपलब्ध नहीं होता । (४) अज्ञानवादी लोग अज्ञान को ही सर्वश्रेष्ठ मान रहे हैं। उनके विचारानुसार जितना भी कष्ट होता है वह सब ज्ञानी–ज्ञानवान् को ही होता है, अज्ञानी को नहीं। परन्तु यह पक्ष भी असंगत है क्योंकि ज्ञान के विना अज्ञान की प्रतीति का होना ही सम्भव नहीं। अतः एकमात्र अज्ञान को श्रेष्ठ मानना किसी प्रकार भी उचित प्रतीत नहीं होता। ___ अब क्षत्रिय ऋषि अपने इस उक्त कथन को प्रमाणित करते हुए फिर कहते हैं इइ पाउकरे बुद्धे, नायए परिणिव्वुए। विजाचरणसंपन्ने , सच्चे सच्चपरक्कमे ॥२४॥ इति प्रादुःकरोति बुद्धः, ज्ञातकः परिनिर्वृतः । विद्याचारित्रसंपन्नः , सत्यः सत्यपराक्रमः ॥२४॥ पदार्थान्वयः-इइ-इस प्रकार पाउकरे-प्रकट करते हुए बुद्धे-तत्त्ववेत्ता नायए-ज्ञातपुत्र श्रीमहावीर परिनिव्वुडे-परिनिर्वृत विजाचरणसंपन्ने-विद्या और चारित्र से युक्त सच्चे-सत्यवादी सच्चपरकमे-सत्य पराक्रम वाले। मूलार्थ-विद्या और चारित्र से युक्त, सत्यवादी, सत्यपराक्रम वाले, तत्त्ववेत्ता, परम निर्वृत्त-निर्वाणप्राप्त, ज्ञातपुत्र, भगवान् श्रीमहावीर स्वामी ने इस प्रकार से इस तत्त्व को प्रकट किया है । टीका-क्षत्रिय ऋषि संजय मुनि से कहते हैं कि हे मुने ! क्रियावादी, अक्रियावादी, विनयवादी और अज्ञानवादी इन चारों का विवरण ज्ञातपुत्र भगवान्
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy