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उत्तराध्ययनसूत्रम्-
[ अष्टादशाध्ययनम्
अपराध हो जाय तो वह उससे अवश्य क्षमा की प्रार्थना करे, जिससे कि कर्मों के बन्ध टूट जाय अथवा शिथिल हो जाय ।
___राजा के द्वारा स्वकृत अपराध की क्षमा याचना के अनन्तर क्या हुआ, अब इसी विषय का प्रतिपादन किया जाता हैअह मोणेण सो भगवं, अणगारोझाणमस्सिओ। रायाणं न पडिमन्तेइ, तओ राया भयद्दओ ॥९॥ अथ मौनेन स भगवान्, अनगारो ध्यानमाश्रितः। राजानं न प्रतिमन्त्रयते, ततो राजा भयद्रुतः ॥९॥
पदार्थान्वयः-अह-तदनंतर मोणेण-मौन भाव से सो-वह भगवंभगवान् अणगारो-अनगार झाणं-ध्यान के अस्सिओ-आश्रित हुआ रायाणंराजा को न पडिमन्तेइ-प्रत्युत्तर नहीं देता है । तओ-उसके पश्चात् राया-राजा भयदुओ-अति भयभीत हुआ।
. मूलार्थ-(गर्द्धभाली नाम से प्रख्यातं ) वह अनगार भगवान मौनभाव से ध्यानारूढ होता हुआ उस राजा को कोई भी प्रत्युत्तर न दे सका । तब राजा अति भयभीत हो गया।
___टीका-जिस समय राजा ने मुनि से अपने अपराध की क्षमा माँगने के लिए प्रार्थना की, उस समय मुनि आत्म-समाधि में निमग्न हो रहे थे। इसलिए उन्होंने क्षमा प्रार्थना के उत्तर में राजा के प्रति कुछ न कहा । परन्तु राजा ने यह सोचा कि मुनि ने क्रोध में आकर उसको उत्तर नहीं दिया । इस कारण वह अति भयभीत हो उठा।
____ भयभीत हुए राजा ने मुनि से जिस प्रकार कहा, अब उसी का वर्णन करते हैं
संजओ अहमम्मीति, भगवं ! वाहराहि मे। कुद्धे तेएण अणगारे, डहेल्ल नरकोडिओ ॥१०॥ संजयोऽहमस्मीति , भगवन् ! व्याहर माम् । क्रुद्धस्तेजसाऽनगारः , दहेत नरकोटीः ॥१०॥