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________________ अष्टादशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [७२३ ma मूलार्थ-काम्पिल्यपुर नगर का संजय नाम वाला राजा, सेना और वाहनादियुक्त होकर शिकार के लिए नगर से बाहर निकला । टीका-काम्पिल्यपुर नगर में एक संजय नाम का राजा राज्य करता था। पूर्वकृत पुण्य के प्रभाव से उसके यहाँ सेना, हाथी, घोड़े और वाहनादि सभी कुछ विद्यमान था । वह एक दिन शिकार खेलने के लिए नगर से बाहर निकला अर्थात् नगर से निकलकर किसी जंगल की ओर प्रस्थित हुआ। अब प्रथम उसके प्रस्थान का वर्णन करते हैं । यथाहयाणीए गयाणीए, रहाणीए तहेव य। पायत्ताणीए महया, सव्वओ परिवारिए ॥२॥ हयानीकेन गजानीकेन, रथानीकेन तथैव च। . पदात्यनीकेन महता, सर्वतः परिवारितः ॥२॥ पदार्थान्वयः-हयाणीए-घोड़ों की अनीका-समूह से गयाणीए-गजों की अनीका से य-और तहेव-उसी प्रकार रहाणीए-रथों की अनीका से पायचाणीए-पदातियों की अनीका से महया-बड़े प्रमाण से सव्वओ-सर्व प्रकार से परिवारिए-घिरा हुआ। मूलार्थ-जो कि अश्व, गज, रथ और पदाति आदि के महान् समूह से सर्व ओर से घिरा हुआ है । तात्पर्य है कि अश्व, रथ और पदाति सेना के समूह के साथ वह नगर से बाहर निकला। टीका-जब वह राजा शिकार के लिए निकला, तब उसके साथ घोड़ों की सेना, हाथियों की सेना, रथों की सेना और पैदल सेना, बहुत बड़े प्रमाण में विद्यमान थी। उसके द्वारा वह चारों ओर से घिरा हुआ था। . नगर से बाहर निकलने के बाद राजा ने क्या किया, अब इसी विषय में कहते हैंमिए छुहित्ता हयगओ, कम्पिल्लुजाणकेसरे । भीए सन्ते मिए तत्थ, वहेइ रसमुच्छिए ॥३॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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