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अह संजइज्जं अट्ठारहमं ज्यां ग्रह
अथ संयतीयमष्टादशमध्ययनम्
....गत सत्रहवें अध्ययन में पापजनक कार्यों के त्याग करने का उपदेश दिया है क्योंकि पापों के छोड़ने से ही संयत होता है तथा पापों का त्याग करने के लिए समृद्धि और भोगों के त्याग की नितान्त आवश्यकता है। अतः इस अठारहवें अध्ययन में समृद्धि और भोगों का परित्याग करने वाले संजय नाम के महाराज का वर्णन किया जाता है । यह इन दोनों अध्ययनों का परस्पर सम्बन्ध है । प्रस्तुत अध्ययन की प्रथम गाथा इस प्रकार है
कम्पिल्ले नयरे राया, उदिष्णबलवाहणे । नामं, मिगव्वं उवणिग्गए ॥१॥
नामेणं संजओ
काम्पिल्ये नगरे संजयो
नाना
राजा, उदीर्णबलवाहनः
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नाम, मृगव्यासुपनिर्गतः ॥१॥
पदार्थान्वयः – कम्पिल्ले - कांपिल्यपुर नगरे - रे- नगर में राया - राजा उदिष्णबलवाहणे - उदय हुआ है बल - सेना, वाहन - अश्व रथादि जिसके नामें - नाम से संजओ नाम - संजय नाम वाला मिगव्वं - मृगया — शिकार — के लिए उवणिग्गएनगर से निकला ।