________________
पोडशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[६६६
देवदाणवगन्धव्वा , जक्खरक्खसकिन्नरा । बम्भयारिं नमसंति, दुक्करं जे करन्ति तं ॥१६॥ देवदानवगन्धर्वाः , यक्षराक्षसकिन्नराः । ब्रह्मचारिणं नमस्कुर्वन्ति, दुष्करं यः करोति तत् ॥१६॥ ___पदार्थान्वयः-देवदाणवगन्धव्वा-देव, दानव और गन्धर्व जक्खरक्खसकिन्नरा-यक्ष, राक्षस और किन्नर बम्भयारिं-ब्रह्मचारी को नमसंति-नमस्कार करते हैं दुक्कर-दुष्कर जे-जो करंति-करता है—पालन करता है तं-उस ब्रह्मचर्य को।
- मूलार्थ-ब्रह्मचारी को देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर ये सब नमस्कार करते हैं क्योंकि वह दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन कर रहा है।
___टीका-इस गाथा में ब्रह्मचर्य की महिमा का वर्णन किया गया है। इसी लिए कहते हैं कि ब्रह्मचारी को देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर सभी नमस्कार करते हैं। क्योंकि वह बड़ा ही दुष्कर कार्य कर रहा है, जो कि ब्रह्मचर्य का पालन करता है । देवों में—वैमानिक देव, ज्योतिष्क देव, भवनपति-दानवसंज्ञा वाले देव और स्वरविद्या के जानने वाले गन्धर्व देव, यक्ष-व्यन्तर जाति के देव [ जिनका निवासस्थान प्रायः वृक्षों में होता है ], राक्षस-मांस की इच्छा रखने वाले और किन्नर ये सब ही व्यन्तर जाति के देव हैं। ये सब के सब ब्रह्मचारी को नमस्कार करते हैं क्योंकि ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन करना कुछ साधारण सी बात नहीं अर्थात् कायर पुरुष इस ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकते। इसको पालन करने वाला तो बड़ा ही शूरवीर पुरुष होना चाहिए । इसलिए ब्रह्मचर्य का पालन करना बड़ा ही दुष्कर है और जो इसका पालन करता है, वह अवश्य ही देव दानव
और गन्धर्वादि के द्वारा पूजनीय और वंदनीय है । इससे सिद्ध हुआ कि ब्रह्मचर्य रूप धर्म सर्वोत्तम धर्म है । अतः इसको अवश्यमेव धारण करना चाहिए । इसके अतिरिक्त इतना और भी स्मरण रहे कि देवता लोग ब्रह्मचारी पुरुष को केवल नमस्कार मात्र ही नहीं करते किन्तु ब्रह्मचारियों की यथासमय रक्षा भी करते हैं। जैसे कि सतीशिरोमणि सीता की परीक्षा के समय पर अग्निकुण्ड का जलकुण्ड बन गया।
अब प्रस्तुत अध्ययन की समाप्ति करते हुए कहते हैं