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________________ षोडशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [ ६६५ मन को हरने वाली है, और ३ स्त्रियों से संस्तव अर्थात् परिचय तथा ४ उनकी इन्द्रियों का देखना-ये चारों कारण ब्रह्मचर्य के संरक्षक नहीं हैं किन्तु उसके विनाश के हेतु हैं । जो सूत्रकी ने "थीजणाइन्नो" पद दिया है, इस कथन से यह भली भाँति सिद्ध हो जाता है कि केवल स्त्रीजन से ही आकीर्ण वह स्थान है । इसलिए पुरुष के न होने के कारण वह स्थान ब्रह्मचारी के लिए अयोग्य है । यदि पुरुषों से आकीर्ण हो तो उस स्थान का निषेध नहीं है । साध्वी के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए अर्थात् वह स्थान पुरुषों से आकीर्ण न हो।स्त्री का सतीत्व सिद्ध करने के लिए भी स्त्रीकथा करने का निषेध नहीं है। इसी कारण से सूत्रकर्ता ने गाथा के द्वितीय भाग में स्त्रीकथा के साथ 'मनोरमा' पद दिया है। जो कथा कामजन्य हो, उसके करने का निषेध है। इसी प्रकार अन्य दो पदों के अर्थविषय में स्वबुद्धि से अनुभव कर लेना चाहिए। कूइयं रुइयं गीयं, हासभुत्तासियाणि य। पणीयं भत्तपाणं च, अइमायं पाणभोयणं ॥१२॥ कूजितं रुदितं गीतं, हास्यभुक्तासितानि च। प्रणीतं भक्तपानं च, अतिमात्रं पानभोजनम् ॥१२॥ ____ पदार्थान्वयः-कूइयं-कूजित रुइयं-रुदित गीयं-गीत य-और हास-हास्य मुत्ता-खाया हुआ आसियाणि-एक आसन पर बैठना पणीयं-प्रणीत भत्तपाणंभात पानी च-पुनः अइमायं-प्रमाण से अधिक पाणभोयणं-पानी और भोजन ! मूलार्थ-स्त्रियों के कूजित रुदित गीत और हास्य आदि शब्दों का सुनना, उनके साथ बैठकर खाये हुए स्निग्ध भोजन आदि का तथा भोगे हुए विषय-विकारों का सरण करना एवं प्रमाण से अधिक भोजन करना (ये सब आत्मगवेषी पुरुष के लिए तालपुट विष के समान हैं)। टीका-इस गाथा में मोहोत्पादक शब्दादि का विषय वर्णन किया गया है। जैसे कि कामक्रीड़ा के समय कूजित शब्द, विरह के होने से अथवा किसी प्रकार के दुःख का अनुभव होने से रुदित शब्द और मन प्रसन्न होने से गीत शब्द, हास्य, साथ बैठकर खाया हुआ, स्निग्ध अन्न और पानी, प्रमाण से अधिक पानी और भोजन, इत्यादि कृत्य ब्रह्मचारी पुरुष न करे । कारण कि मोहोत्पादक शब्द, पूर्व विषयों
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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