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________________ पोडशाध्ययनम् } हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [६८७ जं विवित्तमणाइन्नं, रहियं इत्थिजणेण य। बम्भचेरस्स रक्खट्ठा, आलयं तु निसेवए ॥१॥ यं विविक्तमनाकीर्णं, रहितं स्त्रीजनेन च। ब्रह्मचर्यस्य रक्षार्थम् , आलयं तु निषेवेत ॥१॥ पदार्थान्वयः-जं-जो विवित्तं-विविक्त स्त्री पशु और नपुंसक रहित अणाइन्नं-आकीर्णता से रहित य-और इत्थिजणेण-वीजन से रहियं-रहित बम्भचेरस्सब्रह्मचर्य की रक्खहा-रक्षा के लिए आलयं-स्थान-उपाश्रय का निसेवए-सेवन करे। तु-पादपूर्ति में। मूलार्थ-जो स्थान स्त्री, पशु और नपुंसक से रहित तथा आकीर्णता और स्त्रीजन से रहित है, साधु ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए उसी स्थान को सेवन करे । टीका- इस गाथा में साधु को ऐसे विविक्त एकान्त स्थान में निवास करने का आदेश है कि जहाँ पर स्त्री, पशु और नपुंसक का निवास न हो तथा आकीर्णता से रहित एवं जिसमें स्त्री आदि का पुनः पुनः तथा अकाल में आवागमन न हो अर्थात् ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए साधु इस प्रकार के एकान्त उपाश्रय आदि में निवास करे। यहाँ पर 'आलय' सामान्य वसति का बोधक है अर्थात् कोई भी स्थान हो परन्तु उक्त दोषों से रहित तथा एकान्त होना चाहिए, तब ही वह समाहित चित्त से वहाँ रह सकता है। अन्यथा पूर्व वर्णन किये गये शंका और संयमभेद आदि दोषों की संभावना है। अब द्वितीय समाधि स्थान का वर्णन करते हैंमणपल्हायजणणी , कामरागविवड़णी । बम्भचेररओ भिक्खू , थीकहं तु विवजए ॥२॥ मनःप्रह्लादजननीं , कामरागविवर्धनीम् । ब्रह्मचर्यरतो भिक्षुः, स्त्रीकथां तु विवर्जयेत् ॥२॥ __पदार्थान्वयः-मणपल्हायजणणी-मन को आनन्द देने वाली कामरागविवडणी-कामराग को बढ़ाने वाली बम्भचेररओ-ब्रह्मचर्य में रत भिक्खू-भिक्षु थीकह-स्त्रीकथा को विवञ्जए-त्याग देवे । तु-पादपूर्ति में।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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