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________________ wwwvvvvvv षोडशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [६८५ नो शब्दरूपरसगन्धस्पर्शानुपाती भवति, स निर्ग्रन्थः । तत्कथमिति चेत् ? आचार्य आह-निर्ग्रन्थस्य खलु शब्दरूपरसगन्धस्पर्शानुपातिनो ब्रह्मचारिणो ब्रह्मचर्ये शङ्का वा काङ्क्षा वा विचिकित्सा वा समुत्पद्येत, भेदं वा लभेत, उन्माद वा प्राप्नुयात्, दीर्घकालिको वा रोगातङ्को भवेत्, केवलिप्रज्ञप्ताद् धर्माद् भ्रश्येत् । तस्मात् खलु नो शब्दरूपरसगन्धस्पर्शानुपाती भवेत्, स निर्ग्रन्थः । दशमं ब्रह्मचर्यसमाधिस्थानं भवति ॥१०॥ पदार्थान्वयः-नो-नहीं सद्दरूवरसगन्धफासाणुवादी-शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श के भोगने वाला हवइ-होवे से वह निग्गन्थे-निम्रन्थ है। तं कहमिति चेवह कैसे ? इस पर आयरियाह-आचार्य कहते हैं निग्गन्थस्स-निर्ग्रन्थ खलुनिश्चय सद्दरूवरसगन्धफासाणुवादिस्स-शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श के भोगने वाले बम्भयारिस्स-ब्रह्मचारी के. बम्भचेरे-ब्रह्मचर्य में संका-शंका वा-अथवा कंखाआकांक्षा विइगिच्छा-संशय समुप्पजिजा-उत्पन्न हो जाते हैं भेदं-संयम का भेद लभेजा-प्राप्त होता है उन्मायं-उन्माद को पाउणिज्जा प्राप्त होता है वा-अथवा दीहकालियं-दीर्घकालीन रोगायंक-रोग और आतंक हवेजा-होता है केवलिपन्नताओ-केवलिप्रणीत धम्माओ-धर्म से भंसेजा-भ्रष्ट हो जाता है। तम्हा-इसलिए खलु-निश्चय से नो-नहीं सद्दरूवरसगन्धफासाणुवादी-शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श के भोगने वाला भवेजा-होवे, से-वह निग्गन्थे-निम्रन्थ है । यह दसमेदशवाँ बम्भचेर-ब्रह्मचर्य समाहिठाणे-समाधिस्थान हवइ-है। ___मूलार्थ-जो शब्द रूप रस गन्ध और स्पर्श के भोगने वाला न होवे, वह निर्ग्रन्थ है । कैसे ? आचार्य कहते हैं कि शब्द रूप रस गन्ध और स्पर्श के भोगने वाले निर्ग्रन्थ ब्रह्मचारी के ब्रह्मचर्य में निश्चय ही शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, सन्देह उत्पन्न हो जाता है, संयम का भेद हो जाता है, उन्माद की प्राप्ति हो जाती है, दीर्घकालीन रोग और आतंक की प्राप्ति होती है और केवलि के प्रतिपादन किये हुए धर्म से वह पतित हो जाता है । इसलिए निर्ग्रन्थ शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श के भोगने वाला न होवे। यह दशवाँ ब्रह्मचर्य समाधिस्थान है ।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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