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________________ % 3D षोडशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [६३ भिलषणीयो भवति । ततस्तस्य स्त्रीजनेनाभिलष्यमाणस्य ब्रह्मचारिणो ब्रह्मचर्ये शङ्का वा काङ्क्षा वा विचिकित्सा वा समुत्पद्येत, भेदं वा लभेत, उन्मादं वा प्राप्नुयात्, दीर्घकालिको वा रोगातको भवेत् , केवलिप्रज्ञप्ताद् धर्माद् भ्रश्येत् । तस्मात् खलु नो निम्रन्थो विभूषानुपाती भवेत् ॥९॥ पदार्थान्वयः-नो-नहीं विभ्रसाणुवादी-शरीर को विभूषित करने वाला हवइ होवे, से-वह निग्गन्थे–निर्ग्रन्थ है। तं कहमिति चे-वह कैसे ? आयरियाहइस पर आचार्य कहते हैं-विभूसावत्तिए-विभूषा में वर्तने वाला विभ्रसियसरीरेविभूषित शरीर इत्थिजणस्स-स्त्रीजन को अभिलसणिज्जे-अभिलषणीय-प्रार्थनीय हवइ-होता है। तओ-तदनन्तर णं-वाक्यालङ्कार में है तस्स-उस इत्थिजणेणंस्त्रीजन के द्वारा अभिलसिज्जमाणस्स-प्रार्थना किये हुए बम्भयारिस्स-ब्रह्मचारी के बम्भचेरे-ब्रह्मचर्य में संका--शंका कंखा-कांक्षा वा-अथवा विइगिच्छा-सन्देह समुप्पज्जिज्जा-उत्पन्न होवे भेद-संयम का भेद वा-अथवा लभेज्जा प्राप्त करे उम्मायं-उन्माद रोग को वा-अथवा पाउणिज्जा-प्राप्त करे वा-अथवा दीहकालियंदीर्घकालिक रोगायंक-रोग का आतङ्क हवेज्जा-होवे केवलिपन्नत्ताओ-केवलिप्रणीत धम्माओ-धर्म से भंसेजा-भ्रष्ट होवे । तम्हा-इसलिए खलु-निश्चय से नो-नहीं निग्गन्थे-निर्ग्रन्थ विभूसाणुवादी-शरीर को विभूषित करने वाला हविजा-होवे । मूलार्थ-जो विभूषा को करने वाला नहीं, वह निर्ग्रन्थ है। कैसे? तब आचार्य कहते हैं कि विभूषा को करने वाला और विभूषितशरीर, स्त्रीजन को अभिलषणीय होता है । तत्पश्चात् स्त्रीजन द्वारा प्रार्थना किये गये उस ब्रह्मचारी के ब्रह्मचर्य में शंका, कांक्षा, सन्देह के उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है, संयम का नाश होता है, उन्माद की उत्पत्ति तथा दीर्घकालिक भयंकर रोगों का आक्रमण होता है एवं केवलिप्रणीत धर्म से वह पतित हो जाता है । इसलिए ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ विभूषा न करे। टीका-इस गाथा में निर्ग्रन्थ ब्रह्मचारी के लिए विभूषा-स्नान तथा शृङ्गार आदि करने का निषेध किया गया है क्योंकि शृङ्गार आदि करने अर्थात् अनेक
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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