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षोडशाध्ययनम्]]
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हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[ ६८१ खलु अइमायाए पाणभोयणं आहारेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेदं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु नो निग्गन्थे अइमायाए पाणभोयणं आहारेज्जा ॥८॥ ____नो अतिमात्रया पानभोजनमाहर्ता भवति, स निर्ग्रन्थः । तत् कथमिति चेत् ? आचार्य आह–निर्ग्रन्थस्य खल्वतिमात्रया पानभोजनमाहरतो ब्रह्मचारिणो ब्रह्मचर्ये शङ्का वा काङ्क्षा वा विचिकित्सा वा समुत्पद्येत, भेदं वा लभेत, उन्मादं वा प्राप्नुयात्, दीर्घकालिको वा रोगातको भवेत्, केवलिप्रज्ञप्ताद् धर्माद् भ्रश्येत् । तस्मात् खल्लु नो निम्रन्थोऽतिमात्रया पानभोजनमाहरेत् ॥८॥
पदार्थान्वयः-नो-नहीं अइमायाए-अतिमात्रा से पाणभोयणं-पानी और भोजन आहारेत्ता-करने वाला हवइ-होता, से-वह निग्गन्थे-निर्ग्रन्थ है। तं कहमिति चे-यह कैसे ? इस पर आयरियाह-आचार्य कहते हैं-निग्गन्थस्स-निर्ग्रन्थ के खलु-निश्चय से अइमायाए-अतिमात्रा से पाणभोयणं-पान और भोजन आहारेमाणस्स-करते हुए बम्भयारिस्स-ब्रह्मचारी के बम्भचेरे-ब्रह्मचर्य में संका-शंका कंखा-कांक्षा वा-अथवा विइगिच्छा-सन्देह समुप्पजिजा-उत्पन्न होवे भेदं-संयम का भेद वा-अथवा लभेजा-प्राप्त करे उम्मायं-उन्माद रोग को वा-अथवा पाउणिज्जा प्राप्त करे दीहकालियं-दीर्घकालिक रोगायंकं-रोग का आतंक हवेज्जाहोवे केवलिपन्नत्ताओ-केवलिप्रणीत धम्माओ-धर्म से भंसेज्जा-भ्रष्ट होवे । तम्हाइसलिए खलु-निश्चय से नो-नहीं निग्गन्थे-निर्ग्रन्थ अइमायाए-अतिमात्रा से पाणभोयणं-पान और भोजन आहारेज्जा-ग्रहण करे।