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. उत्तराध्ययनसूत्रम्- [ षोडशाध्ययनम् wwwwwwwwwwwwwwwww वा काङ्क्षा वा विचिकित्सा वा समुत्पद्येत, भेदं वा लभेत, उन्मादं वा प्राप्नुयात्, दीर्घकालिको वा रोगातङ्को भवेत् , केवलिप्रज्ञप्ताद् धर्माद् भ्रश्येत् । तस्मात् खलु नो निर्ग्रन्थः स्त्रीणां पूर्वरतं पूर्वक्रीडितमनुस्मरेत् ॥६॥
पदार्थान्वयः-नो-नहीं निग्गन्थे-निम्रन्थ इत्थीणं-स्त्रियों के पुन्वरयंपूर्व-गृहस्थावास में स्त्री के साथ किया हुआ जो विषयविलास, उसका पुव्वकीलियंपूर्व-स्त्री के साथ की हुई क्रीड़ा का अणुसरित्ता-स्मरण करने वाला हवइ-होवे, से-वह निग्गन्थे-निम्रन्थ है । तं कहमिति चे-वह कैसे ? यदि इस तरह कहा जाय, तो इस पर आयरियाह-आचार्य कहते हैं इत्थीणं-त्रियों के साथ की हुई पुव्वरयं-पूरति पुव्वकीलियं-पूर्वक्रीड़ा का अणुसरमाणस्स-अनुस्मरण करने वाले निग्गन्थस्स बम्भयारिस्स-निर्ग्रन्थ ब्रह्मचारी के बम्भचेरे-ब्रह्मचर्य में संका-शंका वाअथवा कंखा-कांक्षा वा-अथवा विइगिच्छा-सन्देह वा-अथवा समुप्पजिजा-उत्पन्न होवे वा-अथवा भेद-संयम का भेद वा-समुच्चयार्थ में लभेजा-प्राप्त करे उम्मायंउन्माद को पाउणिज्जा प्राप्त करे वा-अथवा दीहकालियं-दीर्घकालिक रोगायंकंरोगातंक हवेजा-होवे वा-अथवा केवलिपन्नत्ताओ-केवलिप्रणीत. धम्माओ-धर्म से भंसेजा-भ्रष्ट होवे । तम्हा-इसलिए खलु-निश्चय से नो-नहीं निग्गन्थे-निर्ग्रन्थ इत्थीणं-स्त्रियों के पुन्वरयं-पूर्वगृहस्थावास में स्त्री के साथ किये हुए विषयविलास को पुचकीलियं-पूर्व-स्त्री के साथ की हुई क्रीड़ा को अणुसरेज्जा-स्मरण करे।
___ मूलार्थ-निर्ग्रन्थ साधु स्त्रियों की पूर्वरति और पूर्वकीडा का स्मरण करने वाला न होवे क्योंकि त्रियों के पूर्वरत और पूर्वक्रीडा का सरण करने वाले निर्ग्रन्थ ब्रह्मचारी के ब्रह्मचर्य में शंका, कांचा अथवा सन्देह आदि दोष उत्पत्र होने की सम्भावना रहती है, संयम का नाश एवं उन्माद की प्राप्ति होती है तथा दीर्घकालिक भयंकर रोगों का आक्रमण होता है एवं केवलिप्रणीत धर्म से वह पतित हो जाता है । इसलिए निम्रन्थ ब्रह्मचारी त्रियों के पूर्वरत और पूर्वक्रीडा का मरण न करे।
टीका-प्रस्तुत गाथा में साधु को स्त्रियों की रतिक्रीडा के स्मरण का निषेध किया है । तात्पर्य कि, यदि कोई साधु विवाह-संस्कार के अन्तर दीक्षित हुआ हो तो