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________________ षोडशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [६७७ कन्दित और विलाप शब्दों को सुनने की चेष्टा न करे । सुरतसमय में कपोतादि पक्षियों के समान जो अव्यक्त शब्द है, उसे कूजित कहते हैं। प्रेममिश्रित रोष से रतिकलहादि में होने वाला शब्द रुदित कहा जाता है । प्रमोद में आकर स्वरतालपूर्वक किया गया गान गीत कहलाता है । एवं प्रसन्नता से अतीव हँसना हास्य शब्द है । अत्यधिक रतिसुख में उत्पन्न होने वाला शब्द स्तनित कहलाता है । भर्ता के रोष से तथा प्रकृति के ठीक न होने से जो शोकपूर्ण शब्द हैं, वे आनंदित और विलपित के नाम से प्रसिद्ध हैं। क्योंकि इन पूर्वोक्त शब्दों के रुचिपूर्वक श्रवण से साधु के ब्रह्मचर्य में पूर्वोक्त शंका आदि अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं, जिनका परिणाम संयमभेद और धर्म से पतित होना है । इसलिए जहाँ पर ऐसे शब्द सुनाई दें, वहाँ पर निर्ग्रन्थ साधु कभी निवास न करे। कारण कि इनसे मन की चंचलता में वृद्धि होती है, और ब्रह्मचर्य में आघात पहुँचता है। अब छठे समाधि-स्थान के विषय में कहते हैं- नो निग्गन्थे 'इत्थीणं पुव्वरयं पुव्वकीलियं अणुसरित्ता हवइ, से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं पुव्वरयं पुव्वकीलियं अणुसरमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेजा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे इत्थीणं पुव्वरयं पुव्वकीलियं अणुसरेजा ॥६॥ ____नो निर्ग्रन्थः स्त्रीणां पूर्वरतं पूर्वक्रीडितमनुस्मर्ता भवेत् , स निर्ग्रन्थः । तत्कथमिति चेत् ? आचार्य आह-निर्ग्रन्थस्य खल स्त्रीणां पूर्वरतं पूर्वक्रीडितमनुस्मरतो ब्रह्मचारिणो ब्रह्मचर्ये शङ्का
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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