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षोडशाध्ययनम् - ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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नो स्त्रीणां कथां कथयता भवति स निर्ग्रन्थः । तत्कथमिति चेत् ? आचार्य आह— निर्ग्रन्थस्य खलु स्त्रीणां कथां कथयतो ब्रह्मचारिणो ब्रह्मचर्ये शङ्का वा काङ्क्षा वा विचिकित्सा वा समुपद्येत, भेदं वा लभेत, उन्मादं वा प्राप्नुयात्, दीर्घकालिको वा रोगातको भवेत्, केवलिप्रज्ञप्ताद् धर्माद् भ्रश्येत्, तस्मान्नो स्त्रीणां कथां कथयेत् ॥२॥
पदार्थान्वयः – नो- नहीं इत्थीगं-स्त्रियों की कहं कथा कहित्ता - कहने वाला हवइ - होवे से- वह निग्गन्थे - निर्बंथ है । त कहमिति चे- वह कैसे ? यदि इस प्रकार कहा जाय तो आयरियाह - आचार्य कहते हैं कि — निग्गन्थस्स - निर्बंथ को खलु - निश्चय ही इत्थी - स्त्रियों की कहं कथा कहेमाणस्स - कहते हुए को बम्भयारिस्स - ब्रह्मचारी के बम्भचेरे-ब्रह्मचर्य में संका- शंका वा अथवा कंखा - कांक्षा वा अथवा विइगिच्छासन्देह वा अथवा समुप्पञ्जिञ्जा-उ - उत्पन्न होवे भेयं-संयमभेद को वा अथवा लभेजाप्राप्त करे उम्मायं - उन्माद को पाउगिजा प्राप्त करे वा अथवा दीहकालियदीर्घकालिक रोगायक - रोगातंक हवेज्जा - होवे वा - अथवा केवलिपन्नत्ताओ - केवलिप्रणीत धम्मा-धर्म से भंसेज्जा - भ्रष्ट हो तम्हा - इसलिए नो नहीं इत्थीणं - स्त्रियों की कहं - कथा कहेजा - कहे ।
मूलार्थ - जो स्त्रियों की कथा नहीं करता, वह निर्ग्रन्थ होता है । ऐसा कहने पर शिष्य ने प्रश्न किया कि क्यों ? तब आचार्य कहते हैं कि — स्त्रियों की कथा करते हुए निर्ग्रन्थ ब्रह्मचारी के ब्रह्मचर्य में शंका, कांक्षा और सन्देह उत्पन्न हो जाता है, संयम का विनाश होता है, उन्माद की प्राप्ति होती है और दीर्घकालिक ज्वरादि रोगों का आक्रमण होता है तथा केवलि भगवान् के प्रतिपादन किये हुए धर्म से वह पतित हो जाता है, इसलिए स्त्री की कथा न करे ।
टीका - इस गाथा में ब्रह्मचर्य की समाधि के द्वितीय स्थान का वर्णन किया गया है । गुरु शिष्य के प्रति कहते हैं कि ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ स्त्रियों की कथा में प्रवृत्त हो । यदि होगा तो उसके ब्रह्मचर्य में शंका, कांक्षा, सन्देह आदि दोषों के उत्पन्न होने की संभावना तथा चारित्रादि का विनाश, उन्माद और दीर्घकालिक रोग की प्राप्ति होगी