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उत्तराध्ययनसूत्रम्- [ षोडशाध्ययनम् एवं वह भगवान् केवलि से प्रतिपादित धर्म से पतित हो जायगा। स्त्रीकथा से यहाँ पर शास्त्रकारों का अभिप्राय स्त्रियों के रूप-लावण्य का वर्णन तथा अन्य कामवर्द्धक चेष्टाओं के निरूपण आदि से है परन्तु पतिव्रता स्त्रियों के शील और संयम को दृढ़ करने वाले आख्यानों के कहने में कोई दोष नहीं है । तथा सूत्रकार के कथनानुसार तो अकेली स्त्री के प्रति धर्म-कथा के प्रबन्ध का भी साधु को अधिकार नहीं है और कामकथा की तो बात क्या है।
अब तृतीय समाधि-स्थान का वर्णन करते हैं । यथा
नो इत्थीणं सद्धिं सन्निसेन्जागए विहरित्ता हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेन्जागयस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेदं वा लभेज्जा, उम्मायंवा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु नो निग्गंथे इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरेज्जा ॥३॥
नो स्त्रीभिः साधं सन्निषद्यागतो विहर्ता भवति स निर्ग्रन्थः। तत्कथमिति चेत् ? आचार्य आह–निर्ग्रन्थस्य खलु स्त्रीभिः साधं सन्निषद्यागतस्य ब्रह्मचारिणो ब्रह्मचर्ये शङ्का वाऽऽकाङ्क्षा वा विचिकित्सा वा समुत्पद्येत, भेदं वा लभेत, उन्मादं वा प्राप्नुयात्, दीर्घकालिको वा रोगातको भवेत्, केवलिप्रज्ञप्ताद् धर्माद् भ्रश्येत्, तस्मात्खलु नो निम्रन्थः स्त्रीभिः सार्धसन्निषद्यागतो विहरेत् ॥३॥
पदार्थान्वयः-नो-नहीं इत्थीहिं-स्त्रियों के सद्धिं-साथ संनिसेजागएपीठ आदि-एक आसन पर बैठा हुआ विहरित्ता-विचरने वाला हवइ-होवे से वह निग्गन्थे-निम्रन्थ होता है तं-वह कह-कैसे ? इति चे-यदि ऐसा कहें तो आयरियाह