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________________ उस समय वाराणसी में शंख नाम का राजा राज्य करता था। उसका नमुची नामक एक राज-मंत्री था। उस मंत्री ने एक समय उस राजा की रानी के साथ दुराचार सेवन किया। राजा को भी उसके इस कुकृत्य का पता लग गया। राजा ने सुनकर, जानकर और देखकर जब भली-भांति निश्चय कर लिया तब उसने भूदत्त नामक चांडाल को बुलाकर कहा कि तुम इस मंत्री को ले जाकर किसी गुप्त स्थान में इसका वध कर दो। तब चांडाल भूदत्त मंत्री नमुची को साथ लेकर अपने घर में आया। घर में आने पर उसने नमुची से कहा कि “यदि तुम मेरे इन पुत्रों को विद्या पढ़ा दो तो मैं तुमको नहीं मारूंगा।" नमुची ने इस बात को स्वीकार कर लिया और तदनुसार दोनों चांडाल-पुत्रों को विद्याध्ययन . कराना आरम्भ कर दिया। यहां पर भी वह दुष्ट बुद्धि वाला नमुची अपने कुत्सित आचार से नहीं टला, अर्थात् वह उस भूदत्त की पत्नी के साथ ही अनाचार सेवन करने लग गया। जब भूदत्त को उसके इस दुष्टकर्म का पता चला, तब उसने उसका वध कर देने का पूर्ण निश्चय कर लिया, परन्तु उन दोनों भाइयों ने अपना विद्या-गुरु जानकर उसे भगा दिया। इसके अनन्तर नमुची हस्तिनापुर नगर में आकर वहां के सनत्कुमार चक्रवर्ती का प्रधान मंत्री बन गया। इधर वे दोनों भाई गायन-कला में अति निपुण हो गए और नगर में गायन करना आरम्भ कर दिया। नगर-निवासी उनके गायन पर मुग्ध हो गए। वे जहां पर भी गायन करते थे लोग अपने काम-धन्धे को छोड़कर वहां पर ही आ जाते थे। इस प्रकार उनके गायन से लोगों के प्रतिदिन के काम-धन्धे में अधिक विघ्न उपस्थित होते देख कर नगर के कतिपय प्रधान पुरुषों ने वहां के राजा से उनके विरुद्ध विज्ञप्ति की। राजा ने भी उनकी विज्ञप्ति पर ध्यान देते हुए उन दोनों चांडाल-पुत्रों को नगर से बाहर चले जाने का आदेश किया। ___ राज्य से इस प्रकार के तिरस्कार को प्राप्त करके उन दोनों भाइयों ने अपमानित होकर नगर से बाहर रहने की अपेक्षा आत्म-हत्या कर लेने को अधिक श्रेष्ठ समझा। वे दोनों एक दिन पर्वत से गिर कर मर जाने का विचार कर ही रहे थे कि उस समय वहां पर उनको एक.मुनि के दर्शन हुए और उनके उपदेश से वे दोनों भाई उनके पास दीक्षित हो गए अर्थात् साधु बन गए। , दीक्षा ग्रहण करने के बाद उन दोनों ने घोर तप किया। फिर विहार करते हुए वे किसी समय हस्तिनापुर में पधारे। वहां पर नमुची ने उनको पहचान लिया और अपने दोष को छिपाने के लिए उनको नगर से बाहर निकलवा दिया। नमुची के इस नीच व्यवहार को देखकर उन्होंने नगर के बाहर बड़ा उग्र तप करना आरम्भ कर दिया। उस उग्र तप के प्रभाव से उनको तेजोलेश्या की प्राप्ति हो गई। तब संभूति को बिना कारण नगर से बाहर निकाले जाने पर क्रोध उत्पन्न हो गया, जिससे उसने नगर पर तेजोलेश्या छोड़ दी। पहले उसके मुख से अति प्रचण्ड धूम निकलना आरम्भ हुआ। यह देख चित्त नाम के दूसरे मुनि ने उसको बहुत समझाया और उसके मुख पर अपना हाथ रख दिया। उससे अग्नि तो रुक गई, परन्तु धूम तो सारे नगर में फैल गया । यह देखकर सनत्कुमार चक्रवर्ती बहुत भयभीत हुआ और अपनी श्रीदेवी नाम की रानी को साथ श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 448 / चित्तसम्भूइज्जं तेरहमं अज्झयणं'
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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