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________________ संयमोपाध्याय विरचित सर्वार्थसिद्धि नामक संस्कृत टीका की एक प्रति तो पंजाब प्रान्तीय जालन्धर नगर निवासी श्रीयुत पूज्य केसर ऋषि जी के भण्डार से मिली, दूसरी लक्ष्मीवल्लभ गणि विरचित दीपिका नाम की टीका नाभा निवासी लाला वंशीलाल सीताराम मालेरी के पुस्तकालय से प्राप्त हुई। तीसरी पुस्तक वादिवेताल श्री शान्तिसूरिविरचित बृहद्वृत्ति है जो कि देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंड की ओर से मुद्रित हुई है, उसके एक से लेकर पांच अध्ययन तो अमृतसर निवासी लाला उमेदसिंह मुसद्दीलाल की ओर से प्राप्त हुए और पांच से लेकर ३६ अध्ययन तक बीकानेर निवासी श्रीमान् सेठ अगरचन्द भैरोंदान जी की ओर से मिले। वि०सं० १६७५ में जब सेठ साहब गणावच्छेदक स्थविरपदविभूषित श्री श्री १००८ स्वामी गणपतिराय जी महाराज तथा श्री श्री १००८ गणावच्छेदक श्री स्वामी जयरामदास जी महाराज व प्रवर्तक गुरुदेव श्री श्री १००८ स्वामी श्री शालिगराम जी महाराज के दर्शनार्थ लुधियाना में पधारे थे, तब उनके पास वे सब अध्ययन थे। उस समय जब उत्तराध्ययन सूत्र की भाषा टीका के विषय में उनसे वार्तालाप हुआ तब वे प्रस्तुत टीका की सहायता के लिए दे गए। संस्कृत अवचूरी भाषाटीका की एक प्रति तथा भावविजयगणि विरचित टीका तो मेरे पास प्रथम से ही मौजूद थी। इनके अतिरिक्त गुजराती भाषा टीका की भी एक प्रति मेरे पास विद्यमान थी। इन उपर्युक्त टीका ग्रन्थों की सहायता से प्रस्तुत भाषा टीका का निर्माण किया गया एवं जहं-जहां भेद प्रतीत हुआ वहां पर उनका यथास्थान स्पष्टीकरण भी कर दिया गया है तथा कतिपय स्थानों में परस्पर जो पाठ-भेद वा पाठान्तर देखने में आता है, उनका टीका द्वारा स्पष्टीकरण कर दिया गया है। मूल पाठ का अधिकांश भाग सेठ देवचन्द लाल भाई की ओर से प्रकाशित हुई प्रति से लिया गया है। आभार-प्रदर्शन जिन महानुभावों ने पूर्वोक्त प्रतियां देकर मेरे इस कार्य में सहायता पहुंचाई है, मैं उन महानुभावों का अन्तःकरण से आभार मानता हूं। अन्त में विद्वज्जनों से प्रार्थना है कि 'गच्छतः स्खलनम्' इस न्याय से प्रस्तुत भाषा टीका के निर्माण में यदि कोई त्रुटि रह गई हो तो वे इसे सुधार लेने की कृपा करें। वि.सं. १६८२, आश्विन शुक्ल. ५ प्रार्थीमंगलवार, लुधियाना (पंजाब) उपाध्याय आत्माराम श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 39 / प्रस्तावना
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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