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________________ उक्त मार्ग से आनन्दपूर्वक जाते हुए मुनि को देखकर वह सोमदेव नाम का पुरोहित गवाक्ष से नीचे उतरा और उसी मार्ग से जब वह नंगे पांव चलने लगा तो उसको वह मार्ग बिल्कुल ही ठंडा प्रतीत होने लगा। तब उसने इस बात को मुनिराज के तपोबल का प्रभाव समझकर मन में बहुत पश्चात्ताप किया और वह सोचने लगा कि _ 'हा! मैंने तो बड़े भारी पापकर्म का उपार्जन किया है जो कि ऐसे मुनीश्वर को इस प्रकार के भयंकर मार्ग से जाने को प्रेरित किया, परन्तु इस मुनि के चरणों के प्रताप से मार्ग की अत्यन्त उष्णता भी शान्त हो गई, अतः यदि मैं इसी मुनि का शिष्य बन जाऊं तब मुझे कोई भी पाप नहीं लगेगा और यदि मैं इनका शिष्य न बना तब तो मैं अवश्य ही किसी भारी पाप का भागी बनूंगा।" इस प्रकार विचारते हुए उसने शंख मुनि के पास जाकर अपने मन के सारे पाप को प्रकाशित कर दिया और उनके चरणों में गिर पड़ा। शंख मुनि ने उसको आश्वासन देते हुए सम्यक् प्रकार से धर्म का उपदेश दिया। धर्म के उपदेश को सुनकर सोमदेव को वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने उक्त मुनि से दीक्षा ग्रहण कर ली। सोमदेव ने जहां अपने ग्रहण किए हुए चारित्र व्रत के पालन में किसी प्रकार की कमी नहीं रखी, वहां उसको इस बात का तो जरूर मद हो गया कि 'मैं ब्राह्मण हूं-उत्तम कुल और उत्तम जाति वाला हूं।' तात्पर्य यह है कि परमार्थ को भली प्रकार से न जानता हुआ वह बहुत काल तक संयम का यथाविधि पालन करके आयु-कर्म के समाप्त होने पर देवता बना। वहां पर बहुत काल तक देवोचित सुखों का उपभोग करके वहां से च्यव कर गंगा के किनारे बलश्रेष्ठ नाम के स्थान में हरिकेश नाम के चाण्डाल की गौरी नाम्नी भार्या के गर्भ में आया। उसके गर्भ में आने पर उसकी माता ने स्वप्न में फलों से लदे हुए विशाल आम के वृक्ष को देखा। जब स्वप्न पाठको को वह स्वप्न-सनाया गया तब उन्होंने कहा कि इस स्वप्न का फल यह है कि तुम्हारे घर में एक बड़ा योग्य पुत्र उत्पन्न होगा। गर्भ का समय पूरा होने पर गौरी के एक पुत्र उत्पन्न हुआ। इस प्रकार जाति-मद के कारण उसका चाण्डाल के घर में जन्म हुआ तथा जाति एवं रूप के मद के फलस्वरूप उसका शरीर सौभाग्य और रूपरहित होने के कारण वह अपने अन्य भाइयों के लिए भी हास्य का कारण बन गया और अन्य बालक भी उसकी शरीर की आकृति को देखकर हंसा करते थे। उन्होंने उसका नाम 'बल' रख दिया और उसी नाम से वह जनता में प्रसिद्ध हो गया। इस प्रकार धीरे-धीरे बढ़ता हुआ वह सबसे क्लेश करने के कारण सबको अप्रिय लगने लगा। किसी समय वसन्तोत्सव के दिनों में हरिकेश चाण्डाल के कुटुम्ब ने नाना प्रकार के खाद्य पदार्थों का संग्रह करके उसे नगर के बाहर ले जाकर रखा और खान-पान के लिए एकत्रित हो गए। परन्तु उस समय बल नाम के उस बालक ने अपने अन्य सजातीय बालकों से बहत क्लेश किया। तब जाति के अन्य वृद्ध पुरुषों ने उसकी इस जघन्य प्रवृत्ति से दुखी होकर उसको पंक्ति से बाहर निकाल दिया, फिर वह दूर खड़ा हुआ ही अपनी जाति के अन्य बालकों की क्रीड़ाएं देखने लगा। वह चाहता था कि श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 404 | हरिएसिज्जं बारहं अज्झयणं
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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