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________________ (अह हरिएसिज्जं बारह अन्झयणं अथ हरिकेशीयं द्वादशमाध्ययनम एकादशवें अध्ययन में जिस बहुश्रुत की पूजा-सत्कार का वर्णन किया गया है उसके लिए भी तप का अनुष्ठान करना परम आवश्यक है। इसलिए इस वक्ष्यमाण बारहवें अध्ययन में तप का माहात्म्य बताते हुए परम तपस्वी हरिकेशबल नाम के साधु के जीवन-वृत्तान्त का वर्णन करते हैं। हरिकेशबल नामक एक साधु महान् तपस्वी हुए हैं, उनके तप का माहात्म्य इस अध्ययन में वर्णन किया जाता है। हरिकेशबल साधु का जीवन-वृत्तान्त वृत्तिकारों ने इस प्रकार से वर्णन किया है- . किसी समय मथुरा नगरी में शंख नाम का एक प्रतापी राजा राज्य करता था। वह विषय-भोगों से विरक्त होकर स्थविरों के पास दीक्षित हो गया और कुछ समय के बाद वह गीतार्थ भी बन गया। - एक समय वह शंख मुनि जो कि पहले शंख नाम का राजा था पृथ्वी-मण्डल में भ्रमण करता हुआ हस्तिनापुर में आया। उस नगर में प्रवेश करने के लिए एक बड़ा ही भयंकर और अति उष्ण मार्ग था। गरमी के दिनों में उस मार्ग पर कोई भी पुरुष नंगे पांवों से नहीं चल पाता था, इसी कारण से उस मार्ग का नाम 'हुतवह' पड़ गया था। ___ शंख मुनि जब इस नगर में भिक्षा लेने के लिए चले तो मार्ग के समीप ही गवाक्ष में बैठे हुए सोमदेव नाम के पुरोहित से शंख मुनि ने ग्राम में जाने का मार्ग पूछा और कहा कि क्या मैं इस मार्ग से चला जाऊं? . शंख मुनि के इन शब्दों को सुनकर सोमदेव ने अपने मन में विचारा कि इस साधु को 'हुतवह' मार्ग से भेजना चाहिए, क्योंकि यदि यह इस मार्ग से जाएगा तो ऐइसके पांव खूब जलेंगे और इसके सन्ताप को मैं यहां पर बैठा हुआ बड़े कौतूहल से देखूगा। इस आशय से प्रेरित हुए सोमदेव नाम के उस पुरोहित ने शंख मुनि को उसी 'हुतवह' मार्ग से जाने की सम्मति प्रदान की। शंख मुनि ने भी सोमदेव के निर्देशानुसार उसी मार्ग का अनुसरण किया, परन्तु मुनि के तपोबल के प्रभाव से उस मार्ग की उष्णता दूर हो गई, अर्थात् उसकी तपन जाती रही, वह गर्म होने के बदले बिल्कुल ठंडा प्रतीत होने लगा और वह शंख मुनि ईर्या-समिति-पूर्वक शनैः-शनैः उस मार्ग से जाने लगे। .. श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 403 / हरिएसिज्जं बारहं अज्झयणं
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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