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________________ मूलार्थ - जैसे वृक्षों में प्रधान जम्बू नामक वृक्ष है, जिसका दूसरा नाम सुदर्शन है तथा जो तदेव के द्वारा अधिष्ठित है उसी प्रकार बहुश्रुत होता है । टीका - जैसे सुदर्शन नाम से भी पुकारा जाने वाला जम्बू नाम का वृक्ष सब वृक्षों में प्रधान होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी सर्व साधुओं में प्रधान होता है तथा जैसे वह अमृतमय शाश्वत फलों से युक्त होता है उसी प्रकार बहुश्रुत भी मृदुभाषणादिरूप सद्गुणों से सम्पन्न होता है। जिस प्रकार वह वृक्ष देवों का आश्रय दाता है उसी प्रकार बहुश्रुत भी अनेक भव्य जीवों का आश्रयभूत होता है और जैसे वृक्ष के नाम से यह जम्बूद्वीप सुप्रसिद्ध हुआ है वैसे ही बहुश्रुत के नाम से गच्छ की प्रसिद्धि होती है तथा जैसे वह जम्बू वृक्ष * अनादृत नाम के देव द्वारा अधिष्ठित है, उसी प्रकार यह बहुश्रुत भी ज्ञानाधिष्ठित होता है, अतः यहां बहुश्रुत को जम्बू वृक्ष से ठीक ही उपमित किया गया है। यहां पर उक्त गाथा की दीपिका टीका में तो पुल्लिंग का निर्देश किया गया है और अन्य वृत्तियों में स्त्रीलिंग का निर्देश है— जैसे कि — जहा से —– जहा सा इत्यादि, सो प्राकृत की शैली से ये दोनों ही रूप मान्य हैं। अब शास्त्रकार बहुश्रुत के लिए शीता नदी की उपमा देते हैं— जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा । सीया नीलवन्तपवहा, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २८ ॥ यथा सा नदीनां प्रवरा, सलिला सागरंगमा । शीता नीलवप्रवा, एवं भवति बहुश्रुतः ॥ २८ ॥ पदार्थान्वयः - जहा —–— जैसे, सा वह, नईण – नदियों में, पवरा— प्रधान, सलिला — नदी, सागरंगमा-- सागर में जाने वाली, सीया— शीता नाम की है— और वह, नीलवन्त - पवहा— नीलवंत पर्वत से निकली है, एवं — इस प्रकार, बहुस्सुए — बहुश्रुत, हवइ — होता है । मूलार्थ - जैसे सागर में मिलने वाली और नीलवन्त पर्वत से उत्पन्न होने वाली शीता नाम की नदी सब नदियों में प्रधान मानी गई है, वैसे ही बहुश्रुत होता है । टीका - जैसे समुद्र में जाकर मिलने वाली और मेरु उत्तर दिशा में स्थित वर्षधर — नीलवन्त पर्वत से उत्पन्न हुई शीता नाम की नदी सभी नदियों में प्रधान मानी जाती है, उसी नदी के समान बहुश्रुत होता है। तात्पर्य यह है कि शीता नदी के समान —-मुनियों में बहुश्रुत प्रधान है और उसकी भांति श्रुत-ज्ञान-रूप जल से परिपूर्ण है, तथा शीता नदी की तरह बहुश्रुत भी मोक्षरूप समुद्र में जा मिलता है—-जा विराजता है । इसी प्रकार बहुश्रुत का भी शीता नदी की तरह उच्च कुल, गोत्रादिरूप नीलवंत पर्वत से ही जन्म होता है तथा जैसे उक्त नदी शीतल जल और विस्तृत प्रवाह से युक्त है उसी प्रकार बहुश्रुत भीक्षमारूप शीतल जल और ज्ञान, दर्शन, चारित्र के विस्तृत प्रवाह से युक्त है । ★ इस वृक्ष का पूर्ण विवरण जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति और जीवाभिगम सूत्र में देखना चाहिए। श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 399 / बहुस्सुयपुज्जं एगारसं अज्झणं
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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