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________________ पदार्थान्वयः – जहा — जैसे, से वह, तिक्खसिंगे - तीक्ष्ण सींगों वाला, जायखन्धे- उन्नत स्कन्धों वाला, वसहे वृषभ - बैल, जूहाहिवई - गो-वर्ग का स्वामी, विरायई – शोभा पाता है, एवं — उसी प्रकार, बहुस्सुए — बहुश्रुत, हवइ — होता है । मूलार्थ — जैसे तीक्ष्ण श्रृङ्गों वाला तथा उन्नत स्कन्ध वाला यूथाधिपति – गोवर्ग का स्वामी वृषभ अर्थात् बैल शोभा पाता है, उसी प्रकार वह बहुश्रुत शोभा पाता है । • टीका - इस गाथा में बहुश्रुत को तीक्ष्ण शृङ्ग, उन्नत ककुद और गौओं के यूथ के स्वामी उत्तम वृषभ से उपमित किया गया है। जिस प्रकार अपने तीक्ष्ण श्रृङ्गों और उन्नत ककुद से युक्त उत्तम वृषभ अपने गो-वर्ग का स्वामी होकर संसार में शोभा पाता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी अपने गच्छ का अधिपति होकर अर्थात् आचार्यादि पद से विभूषित होकर अपनी प्रभामयी गुणगरिमा से संसार में गौरवान्वित होता है। यहां पर बहुश्रुत का स्व-शास्त्र और पर - शास्त्र विषयक जो विशिष्ट ज्ञान है वही उसके दो तीक्ष्ण श्रृङ्ग हैं तथा जिस प्रकार वृषभ का स्कन्ध मांस की उपचिति से पुष्ट होकर भार के उद्वहन में समर्थ होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी ज्ञानादि गुणों के द्वारा अनुभव - बल में वृद्धि प्राप्त करके गच्छ के अनेकविध कार्यों के भार को उठाने में समर्थ होता है। इसी प्रकार जैसे वृषभ अपने यूथ — गो वर्ग में प्रधान पद प्राप्त करता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी साधु-समुदाय का अधिपति होकर अपने आचार्य पद को सुशोभित करता है। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार वृषभ धौरेय भारोद्वहन में समर्थ होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी शासन के भार को उठाने में समर्थ होता है । अब शास्त्रकार सिंह की उपमा से बहुश्रुत का वर्णन करते हैं जहा से तिक्खदाढे, उदग्गे दुप्पहंसए । सीहे मियाण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुएं ॥ २० ॥ यथा स तीक्ष्णदंष्ट्रः, उदग्रो दुष्प्रधर्षकः । सिंहो मृगाणां प्रवरः, एवं भवति बहुश्रुतः ॥ २० ॥ पदार्थान्वयः जहा जैसे, से वह, तिक्खदाढे तीक्ष्ण दादों वाला, उदग्गे– —उत्कट, दुप्पहंसए— जिसका जीतना कठिन है, सीहे—– सिंह, मियाण – मृगों में, पवरे — प्रधान होता है, एवं - उसी प्रकार, बहुस्सुए — बहुश्रुत, हवइ — होता है । मूलार्थ — जैसे उत्कट एवं तीक्ष्ण दादों वाला और जिसका जीतना अति कठिन है वह सिंह मृगों अर्थात् वन के समस्त जीवों में प्रधान होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी प्रधान होता है। टीका - इस गाथा में बहुश्रुत को सिंह से उपमित किया गया है, अर्थात् जैसे सिंह जंगल के समस्त जीवों में अधृष्ट और प्रधान होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी संसार के जीवों में अधृष्ट और प्रधान होता है । श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 393 / बहुस्सुयपुज्जं एगारसं अज्झयणं
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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