________________
.बुद्धस्य निशम्य भाषितं, सुकथितमर्थपदोपशोभितम् । राग द्वेषं च छित्त्वा, सिद्धिगतिं गतो गौतमः || ३७ ॥
इति ब्रवीमि |
इति द्रुमपत्रकं अध्ययनं संपूर्णम् ॥ १० ॥ पदार्थान्वयः–बुद्धस्स—बुद्ध के, भासियं—भाषण को, निसम्म–सुनकर जो, सुकहियंसुकथित और, अट्ठ–अर्थ, पओवसोहियं तथा पदों से उपशोभित है, राग-राग, दोसं द्वेष को, छिंदिया—छेदन करके, सिद्धिगई—सिद्धि अर्थात् मुक्ति को, गए—प्राप्त हो गए, गोयमे—गौतम मुनि, त्ति—इस प्रकार, बेमि मैं कहता हूं।
मूलार्थ इस प्रकार सुन्दर अर्थ और पदों से सुशोभित स्वयं बुद्ध भगवान् महावीर स्वामी के भाषण किए तत्त्व को सुनकर राग और द्वेष को छेदन करके गौतम मुनि सिद्धि को प्राप्त हो गए, इस प्रकार मैं कहता हूं।
टीका—भगवान् महावीर स्वामी के सदुपदेश को सुनकर जो कि सुन्दर अर्थ और पद-विन्यास से सुशोभित हैं श्री गौतम स्वामी राग-द्वेष का त्याग करके परम कल्याणरूप निर्वाणपद को प्राप्त हो गए। इस कथन का तात्पर्य यह है कि भगवान् का जो उपदेश है वह परम शान्त और सर्व प्रकार के उपद्रवों से रहित परम सुखरूप मोक्ष के देने वाला है और निर्वाण-साधक वीतरागता की प्राप्ति ही उसका मुख्य प्रयोजन है।
इस गाथा में आए हुए 'बुद्ध' शब्द से भगवान् महावीर स्वामी का ही ग्रहण अभिप्रेत है (बुद्धस्यकेवलालोकावलोकित-समस्त-वस्तुतत्त्वस्य प्रक्रमाच्छ्रीमन्महावीरस्य' इति वृत्तिकारः) अर्थात् जिसने केवलज्ञान के द्वारा समस्त लोक के पदार्थों को जान लिया है वही बुद्ध होता है, अतः श्री महावीर स्वामी का नाम ही यहां पर बुद्ध है।
तात्पर्य यह है कि बौद्ध मत के प्रचारक शाक्यमुनि के नाम से विख्यात जो बुद्ध हुए हैं उनका इस प्रकरण से कोई भी सम्बन्ध नहीं है, अतः प्रस्तुत प्रकरण में भगवान् महावीर स्वामी का नाम ही बुद्ध है और बुद्ध शब्द स्वयं-बुद्धता का ही व्यंजक है। ___ इसके अतिरिक्त उक्त गाथा का यह भी भाव है कि जिस प्रकार भगवान् के उपदेश से गौतम स्वामी ने निर्वाण-पद को प्राप्त किया उसी प्रकार भगवान् के उपदेशानुसार आचरण करके प्रत्येक विचारशील पुरुष मोक्षपद का अधिकारी बन सकता है।
'त्ति बेमि' इस वाक्य की व्याख्या पहले अनेक बार की जा चुकी है, उसी के अनुसार यहां पर भी इस वाक्य का भावं समझ लेना चाहिए।
दशम अध्ययन संपूर्ण।
श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 377 /
दुमपत्तयं दसमं अज्झयणं