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आयरियत्तं—आर्यत्व—आर्यदेश का मिलना, दुल्लहं—दुर्लभ है, बहवे—बहुत, दसुया चोर हैं, मिलक्खुया—म्लेच्छ हैं, समयं—समय मात्र का भी, गोयम हे गौतम! मा पमायए—प्रमाद मत करो। ___ मूलार्थ मनुष्य-जन्म के मिलने पर भी आर्य देश का मिलना फिर भी कठिन है, क्योंकि अन्य देशों में बहुत से चोर और म्लेच्छ रहते हैं, अतः हे गौतम! समय मात्र का भी प्रमाद मत करो। ____टीका—इस गाथा में यह बताया गया है कि यदि पुण्यवश किसी जीव को मनुष्य-जन्म मिल जाए तो भी आर्य देश में जन्म का होना अति दुर्लभ है, क्योंकि आर्य-देश पुण्यात्मा जीवों का देश है। इससे बाहर के अन्य देशों में ऐसी जातियां रहती हैं जिनका चोरी ही मुख्य धन्धा है और वे जातियां म्लेच्छ हैं, इसलिए उन जातियों के देश म्लेच्छ देश एवं अनार्य देश कहलाते हैं। उन देशों में धर्माधर्म, भक्ष्याभक्ष्य और गम्यागम्य का कुछ भी बोध नहीं। वे लोग अव्यक्त भाषाओं के भाषी हैं जो कि आर्य भाषा से सर्वथा विपरीत हैं। शक, यवन आदि लोगों के देशों को अनार्य देश कहा जाता है।
तात्पर्य यह है कि यदि दस्यु अथवा म्लेच्छ जाति में जन्म हो भी गया तो क्या हुआ? क्योंकि ये जातियां प्रायः धर्म से रहित और मांसाहारी हैं। इसलिए भगवान् कहते हैं कि हे गौतम! उत्तम कुल और उत्तम आर्य-देश में जन्म लेने की इच्छा रखने वाले साधकों को समय मात्र का भी प्रमाद नहीं करना चाहिए।
आर्य-देश का प्रमाण साढ़े पच्चीस देशों का है, अर्थाते सेतुबन्ध रामेश्वर से लेकर हिमालय पर्वत के अन्तर्गत आने वाले देश आर्य देश हैं। इस सीमा से बाहर के देश अनार्य देश हैं। उन देशों के मनुष्यों का जीवन और आचरण प्रायः आर्य-धर्म के अनुकूल नहीं है और उनमें से बहुत से मनुष्यों का आहार-व्यवहार प्रायः पशुओं के सदृश है। अब आर्य देश के मिलने पर भी शरीर के सम्पूर्ण अवयवों की दुर्लभता के विषय में कहते हैं
लभ्रूण वि आरियत्तणं, अहीणपंचेंदियया हु दुल्लहा । विगलिंदियया हु दीसई, समयं गोयम! मा पमायए ॥ १७॥
लब्ध्वाप्यार्यत्वं, अहीनपंचेन्द्रियता हु दुर्लभा ।
विकलेन्द्रियता हु दृश्यते, समयं गौतम! मा प्रमादीः ॥ १७॥ .. पदार्थान्वयः लभ्रूण विमिलने पर भी, आरियत्तणं—आर्य देश के, अहीण–सम्पूर्ण, पंचेंदियया—पंचेन्द्रियपन, हु–निश्चय ही, दुल्लहा—दुर्लभ है, हु—जिससे कि, विगलिंदिययाविकलेन्द्रियपन, दीसई–देखा जाता है, समय-समय मात्र का भी, गोयम हे गौतम, मा पमायए—प्रमाद मत करो।
मूलार्थ—मनुष्य-जन्म और आर्य देश के मिलने पर भी सम्पूर्ण पांचों इन्द्रियों का मिलना निश्चय ही दुर्लभ है, क्योंकि जीवों में प्रायः विकलेन्द्रियता अधिक देखी जाती है।
टीका—यदि किसी जीव को मनुष्य-जन्म के साथ आर्य देश की प्राप्ति भी हो जाए तो उसको |
श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 360 | दुमपत्तयं दसमं अज्झयणं