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___क्या इस प्रकार से राजर्षि नमि ने ही किया है अथवा और भी कोई इस प्रकार से अपनी आत्मा को संयम में आरूढ़ करने का प्रयत्न करते हैं, अब इस विषय का उल्लेख किया जाता है
एवं करेन्ति संबुद्धा, पंडिया पवियखणा । विणियट्टन्ति भोगेसु, जहा से नमी रायरिसी ॥ ६२ ॥
त्ति बेमि | इति नमिपव्वज्जा नाम नवममज्झयणं समत्तं ॥ ६ ॥ एवं कुर्वन्ति संबुद्धाः, पण्डिताः प्रविचक्षणाः । विनिवर्तन्ते भोगेभ्यः, यथा स नमी राजर्षिः ॥ ६२॥
इति ब्रवीमि |
इति नमिप्रव्रज्या नाम नवममध्ययनं सम्पूर्णम् | पदार्थान्वयः—एवं—इसी प्रकार, संबुद्धा तत्ववेत्ता, करेन्ति—करते हैं, पंडिया—पण्डित, और, पवियक्खणा विचक्षण, भोगेसु—भोगों से, विणियट्टन्ति निवृत्त होते हैं, जहा—जैसे, से—वह, नमी रायरिसी–राजर्षि नमि, त्ति बेमि—इस प्रकार मैं कहता हूं। ___मूलार्थ इसी प्रकार से अन्य तत्त्ववेत्ता, विचारशील पंडित लोग भी भोगों से निवृत्त होकर दीक्षा ग्रहण करते हुए परम निर्वाण-पद को प्राप्त करते हैं, जिस प्रकार कि नमि ने किया है, ऐसे मैं कहता हूं।
टीका तत्त्वों का यथार्थ रूप से ज्ञान प्राप्त करने वाले को तत्त्ववेत्ता और आत्म-अनात्म पदार्थों का यथार्थ निर्णय करने वाले को विचक्षण कहा जाता है। सदसद् वस्तु के विवेकी का नाम पंडित है | कुशल कर्म एवं मोक्ष मार्ग के साधनों में सभी विचारशील पुरुषों का समान मत होता है और समान ही प्रवृत्ति होती है। अतः निवृत्ति प्रधान संयम-मार्ग में प्रवृत्त होने के लिए विषय-भोगों का त्याग और धार्मिक क्रियाओं के यथाविधि अनुष्ठान में वे पूर्ण दृढ़ता से प्रवृत्त होते हैं। उनकी इस दृढ़ प्रवृत्ति को सामान्य पुरुष तो क्या देवता तक भी शिथिल नहीं कर सकते।
जैसे कि राजर्षि नमि को अपने धार्मिक विश्वास से गिराने के लिए अनेक विध प्रयत्न करने पर भी इन्द्र निष्फल ही रहा तथा उक्त ऋषि अपने निश्चय में पूर्ण दृढ़ रहे । जो पुरुष संयम ग्रहण करने के बाद अपने आध्यात्मिक विचारों को पूर्ण रूप से पुष्ट करते हुए तदनुकूल आचरण करने में निशंक और निर्भय होते हैं, उनको निर्वाण-पद की प्राप्ति अवश्यंभावी होती है। यही इस गाथा का फलितार्थ है।
इस प्रकार श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं। इत्यादि सब पूर्ववत् समझ लेना चाहिए।
नवम अध्ययन संपूर्ण
श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 346 / णवमं नमिपवज्जाणामज्झयणं