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वैक्रिय रूप, इन्दत्तं—इन्द्र रूप को धारण करके, वन्दइ-वन्दना करता है, अभित्थुणन्तो-स्तुति करता हुआ, इमाहिः इन, महुराहिं—मधुर, वग्गूहिं—वचनों से। ___ मूलार्थ—इसके अनन्तर इन्द्र धारण किए ब्राह्मण रूप का त्याग करके और अपना यथार्थ रूप बनाकर इन मधुर वचनों से स्तुति करता हुआ राजर्षि नमि से कहता है
___टीका इस गाथा में धर्म पर दृढ़ रहने वाले आस्तिक पुरुषों को अन्त में देवता तक भी वन्दन करते हैं, यह भाव ध्वनित किया गया है। जब देवेन्द्र किसी भी प्रकार से राजर्षि नमि को अपने विशुद्ध भावों से रत्ती भर भी विचलित न कर सका तब उसने उत्तर वैक्रिय रूप की लब्धि के द्वारा अपने नकली ब्राह्मण वेष का परित्याग करके असली इन्द्र-स्वरूप को धारण कर लिया और आगे लिखे मधुर वचनों से स्तुति करते हुए ऋषि को वन्दन किया।
___ यहां पर ब्राह्मण के अर्थ में 'माहण' शब्द का प्रयोग आर्ष माना गया है, अन्यथा प्राकृत में तो ब्राह्मण का 'बंभणं' यह प्रतिरूप होता है। .
इन्द्र ने जिन वचनों के द्वारा ऋषि का स्तवन किया अब उन्हीं वचनों का दिग्दर्शन कराया जाता
अहो! ते णिज्जिओ कोहो, अहो! माणो पराजिओ । अहो! निरक्किया माया, अहो! लोहो वसीकओ ॥ ५६ ॥
अहो! त्वया निर्जितः क्रोधः, अहो ! मानः पराजितः ।
अहो! निराकृता माया, अहो ! लोभो वशीकृतः ॥ ५६ ॥ पदार्थान्वयः—अहो—आश्चर्य है, ते—तुमने, णिज्जिओ—जीत लिया है, कोहो—क्रोध को, अहो आश्चर्य है, माणो-गर्व को, पराजिओ पराजित कर दिया है, अहो आश्चर्य है, निरक्किया—जीत लिया है, माया—छल-कपट को, अहो—आश्चर्य है, लोहो लोभ को वसीकओ वश में कर लिया है।
' मूलार्थ हे ऋषे! आपने क्रोध को जीत लिया है, अहंकार को पराजित कर दिया है, छल-कपट को दूर करके लोभ को भी अपने वश में कर लिया है, यह बहुत बड़ा आश्चर्य है! ____टीका-क्रोधादि कषाय ही आत्मा के सबसे अधिक और बलवान् शत्रु हैं। ये प्रतिक्षण आत्मा को उन्मार्ग की तरफ ही ले जाने का प्रयत्न करते हैं। इनके वशीभूत हुआ आत्मा कभी सन्मार्ग में प्रवृत्त नहीं हो सकता, ये जितने दुष्ट हैं, उतने ही बलवान् भी हैं, इनको जीतना सहज नहीं है। बड़े-बड़े बलवान् और बुद्धिमान व्यक्ति भी इनके सामने ठहर नहीं सकते। कोई विरला वीरात्मा ही इनको पराजित कर सकता है, इसलिए इन दुर्जय कषायों पर जिसने विजय प्राप्त कर ली, वही सच्चा विजेता और वीर आत्मा है। वह मनुष्य और देवता सभी के लिए पूज्य और वन्दनीय है। राजर्षि नमि उन वीरात्माओं में से एक हैं जिन्होंने कषायों पर विजय प्राप्त करके अपनी लोकोत्तर वीर-चर्या का
. श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 341 / णवमं नमिपवज्जाणामज्झयणं