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________________ गृहस्थाश्रम में भी देश-विरति-धर्म का पालन है, परन्तु वह सर्वथा निर्दोष नहीं और उसका त्याग भी इसी हेतु से किया गया है, इसलिए आपका जो प्रश्न है वह अप्रासंगिक एवं अनुपादेय है। __इस गाथा में दो बातों का उल्लेख किया गया है, १–सर्वविरति धर्म की सर्वश्रेष्ठता और २अज्ञानतप की निरर्थकता। इससे यही प्रमाणित हुआ कि गृहस्थाश्रम की अपेक्षा साधु-धर्म ही अधिक श्रेष्ठ और उपादेय है। एयमठें निसामित्ता, हेउ-कारण-चोइओ । तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ४५ ॥ एनमर्थं निशम्य, हेतु-कारण-नोदितः । . ततो नमि राजर्षि, देवेन्द्र इदमब्रवीत् ॥ ४५ ॥ (शब्दार्थ पूर्ववत्) मूलार्थ—यह सुनने के बाद देवेन्द्र ने हेतु और कारण से प्रेरित होकर राजर्षि नमि के प्रति इस प्रकार कहा हिरणं सुवण्णं मणिमुत्तं, कंसं दूसं च वाहणं । कोसं च वढावइत्ता णं, तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥ ४६॥ हिरण्यं सुवर्ण मणिमुक्तं, कांस्यं दूष्यं च वाहनम् | कोषं च वर्धयित्वा, ततो गच्छ क्षत्रिय : ॥ ४६॥ पदार्थान्वयः हिरण्णं हिरण्य, सुवण्णं सुवर्ण, मणिमुत्तं-मणि-मोती, कंसं—कांसी के पात्र, दूसं—वस्त्र, च—और, वाहणं-वाहन, च—और, कोसं—कोश, वड्ढावइत्ताणं बढ़ा करके, तओ तदनन्तर, खत्तिय-हे क्षत्रिय!, गच्छसि—तुम्हें जाना चाहिए। ___ मूलार्थ हे क्षत्रिय! पहले तुम्हें हिरण्य, सुवर्ण, मणि और मुक्ताफल तथा कांस्य, वस्त्र और वाहनादि से कोश को बढ़ाकर फिर साधना-पथ पर जाना चाहिए। ___टीका—इस प्रश्न में इन्द्र राजर्षि नमि के लोभ की परीक्षा कर रहे हैं। घड़ा हुआ सोना अर्थात् आभूषण रूप में परिवर्तित हुआ सुवर्ण हिरण्य कहलाता है, सामान्य सोने को सुवर्ण कहते हैं। चान्दी, सोना, मणि-मोती, पात्र, वस्त्र और यान-वाहन आदि पदार्थों से कोश की भरपूर वृद्धि करने के बाद आपको जाना चाहिए। इस कथन से यह सिद्ध किया गया है कि राजा को कोश की अभिवृद्धि का पूरा ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि पंडितों और राजाओं का कोश ही सर्वस्व है। जैसे कोश अर्थात् शब्द-कोश के ज्ञान से रहित पंडित शब्द-बोध से अपरिचित ही रह जाता है, उसी प्रकार कोश अर्थात् खजाने से रहित राजा ★१. 'हिरण्यं घटितं हेम, सुवर्णमघटितम्' इति वृत्तिः। श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 334 / णवमं नमिपवज्जाणामज्झयणं ।
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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