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________________ उसे साधु का वेष भी दे दिया जिसको कि उसने ग्रहण कर लिया। इसके बाद वह कपिल द्रव्य और भाव से पूर्णतया साधु बनकर राजा के पास से होकर जब जाने लगा तो राजा ने उससे पूछा, 'क्या तुमने अब तक मांगने के विषय में निश्चय किया है या नहीं?' राजा के इस वचन को सुनकर कपिल मुनि बोले—'राजन्! जहां पर लाभ है वहां पर ही लोभ है, क्योंकि लाभ से ही लोभ की वृद्धि होती है। देखो, इस तृष्णा की विचित्रता! जो कि दो मासे स्वर्ण से बढ़ती हुई करोड़ों तक पहुंचने पर भी पूरी नहीं हो सकी। इसलिए इसका सर्वथा त्याग कर देना ही मैंने अपने लिए परम श्रेयस्कर समझा है। अब तो मुझे न लाख की आवश्यकता है, न करोड़ों की। मेरी दृष्टि में तो अब लाख और राख में तथा कौड़ी और करोड़ में कुछ भी अन्तर दिखाई नहीं देता। अतः हे राजन्! मुझे अब किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं है?" __ यह कहकर कपिल मुनि आगे को चल दिए और संयम की सतत आराधना में लगे हुए स्वतंत्रता-पूर्वक विचरने लगे। ___ इस प्रकार विचरते हुए कपिल मुनि के छः मास बीत गए। छ: मास के बाद चारों घाती कर्मों का क्षय होने के बाद कपिल मुनि को केवल-ज्ञान की प्राप्ति हो गई। अब वह कपिल मुनि केवली हो गए और कपिल केवली के नाम से ही संसार में विख्यात हुए। __ किसी समय श्रावस्ती नगरी के अन्तराल में बसने वाली पांच सौ चोरों की एक टोली को प्रतिबोध देने के लिए कपिल केवली ने श्रावस्ती की ओर विहार किया। वहां पर जब उनकी उस टोली से भेंट हुई, तब चोरों ने उनको पकड़कर उपसर्ग देना चाहा। तब अपने साथियों के द्वारा कपिल केवली मुनि को पीड़ित होते हुए देख उनके सरदार बलभद्र ने उनको ऐसा अनर्थ का काम करने से रोका और कहा कि इनको कुछ मत कहो, इनके पास कुछ नहीं है, ये तो निर्ग्रन्थ साधु हैं, इनको किसी प्रकार का कष्ट पहुंचाना बहुत ही अनर्थ का कारण है। इसलिए आओ, इनसे कोई सुन्दर गीत सुनाने की प्रार्थना करें। .. अपने नायक बलभद्र के आदेश को सुनकर उन चोरों ने कपिल केवली को छोड़ दिया और उनसे गीत सुनाने के लिए प्रार्थना करने लगे। उनकी प्रार्थना को स्वीकार करके कपिल मुनि ने उन पांच सौ चोरों की टोली के मध्य में बैठकर जो गीत उनको सुनाया था, वह यही आठवां अध्ययन है अर्थात् इस आठवें अध्ययन को ही उन्होंने गीत के रूप में उनको सुनाया। जब उनके मध्य में बैठकर कपिल केवली ने इस अध्ययन की गाथाओं को संगीत के रूप में उनको सुनाना आरम्भ किया तो उनमें से कोई. पहली गाथा से प्रतिबोध को प्राप्त हो गया, कोई दूसरी और कोई तीसरी से । बीसवीं गाथा के सुनने तक सारे के सारे चोर प्रतिबोध को प्राप्त हो गए। इस प्रकार प्रतिबोध करने के अनन्तर भगवान् कपिल केवली उनको दीक्षा देकर अपने साथ लेकर चल दिए। यही कपिलाख्यान है। इस अध्ययन में जिन गाथाओं को कपिल केवली ने उन चोरों । श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 281 | काविलीयं अट्ठमं अज्झयणं
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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