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संग्रह किया जाता है, तथा जैसे प्रमार्जनी (बुहारी-झाडू) की अनेक सीखें एकत्रित की जाती हैं, ठीक उसी प्रकार जिसमें अनेक अर्थों का संग्रह किया जाए, उसी को "सूत्र की भांति सूत्र" इस नाम से अभिहित किया जाता है। अथवा अर्थ का सूचक होने से भी सूत्र कहा जाता है “अर्थस्य सूचनाद्वा सूत्रम्' तात्पर्य यह है कि सूत्र में जो अर्थ निहित होता है उसकी सूचना सूत्र के उच्चारण करने पर हो जाती है। अपिच सूक्त (सुन्दर कथन) का भी प्राकृत में 'सुत्त' बनता है। इसलिए जो भली प्रकार से कथन किया जाए वह भी सूत्र कहलाता है। इसके अतिरिक्त सूत्र शब्द की निरुक्ति के लिए एक और गाथा उपलब्ध होती है। यथा
"नेरुत्तियाई तस्स, सूयइ सिव्वइ तहेव सुवइति” |
अणुसरतित्ति भेया, तस्स नामा इमा हुंति ॥ २ ॥ इस गाथा में भी भिन्न-भिन्न रूपों में सूत्र शब्द की निरुक्ति निर्वचन किया गया है। यथा(१) सूचयतीति सूत्रं, (२) सीव्यतीति सूत्रं, (३) सुवतीति सूत्रं, (४) अनुसरतीति सूत्रम् इत्यादि । (१) अर्थ का सूचक होने से सूत्र कहा जाता है तथा जैसे खोई हुई सुई सूत्र द्वारा उपलब्ध हो जाती है, अर्थात् सूत्र के साथ खोए जाने पर सूत्र से उसका पता मिल जाता है, उसी प्रकार किसी विस्तृत अर्थ की सूचना देने के कारण सूत्र कहलाता है। (२) जिस प्रकार सूई के द्वारा वस्त्रादि सिये जाते हैं उसी प्रकार अनेक अर्थों का संग्राहक होने से सूत्र कहा जाता है। (३) सुप्त-प्रबोध की भांति सूत्र होता है, अर्थात् जैसे सोए हुए व्यक्ति को जगाकर ही बोध कराया जाता है, उसी प्रकार उच्चारण के अनन्तर इसके अर्थ द्वारा भव्य जीवों को जगाकर प्रतिबोध दिया जाता है। इसी कारण सूत्र शब्द को सुप्त अर्थ में ग्रहण किया जाता है।
तथा—'अर्थस्रवणात् सूत्रम्-अर्थात् अर्थ का स्रावक होने से सूत्र कहलाता है। जैसे सूर्य के सम्मुख होने से सूर्यकान्तमणि अग्नि को बरसाती है और चन्द्रमा के सम्मुख होने पर चन्द्रकान्त मणि से जल की वर्षा होने लगती है, उसी प्रकार जो अर्थ का स्रावक-अर्थों की वृद्धि करने वाला है उसे सूत्र कहते हैं.। तात्पर्य यह कि जैसे सूर्य और चन्द्रमा की किरणों के स्पर्श से सूर्यकान्त मणियों से अग्नि
और चन्द्रकान्तमणियों से जल का वर्षण होने लगता है, उसी प्रकार जिसके उच्चारण से अर्थों की धारा निकल पड़े, उसका नाम सूत्र है।
अथवा “अनुसरतीति सूत्रम्' अर्थात् जिसके अनुसरण से—सहायता से कर्मों के मल को दूर किया जाए, उसको सूत्र कहते हैं। अनुसरण दो प्रकार का है—एक द्रव्यानुसरण और दूसरा भावानुसरण | इन दोनों के स्वरूप को निम्नलिखित एक दृष्टान्त से समझें। यथा
___२. छाया-. निरुक्तानि तस्य–सूचयति सीव्यति तथैव सुवति इति |
अनुसरति इति भेदाः, तस्य नामानि इमानि भवन्ति ||
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श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 23 । प्रस्तावना