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इत्यादि, सो किस प्रकार से संगत होगा ? इसलिए उत्तराध्ययन सूत्र को श्री भद्रबाहु स्वामी की कृति / रचना कहना व मानना किसी भी प्रकार से उचित प्रतीत नहीं होता। सूत्र शब्द की निरुक्ति, लक्षण और भेदानुभेद
जैनागमों को सूत्र शब्द के नाम से भी अभिहित किया गया है। इसीलिए सूत्र शब्द की व्युत्पत्ति वा निरुक्ति तथा लक्षण और उसके अवान्तर भेदानुभेदों की जिस प्रकार से जैन-शास्त्रों में चर्चा की गई है, उसका उल्लेख कर लेना भी आवश्यक प्रतीत होता है, अतः इन बातों का क्रमशः यहां पर विचार किया जाता है। निरुक्ति सूत्र शब्द के निर्वचन में निम्नलिखित गाथा देखने में आती है। यथा
"सुत्तं तु सुत्तमेव य, अहवा सुत्तं तु तं भवे लेसो |..
अत्थस्स सूयणा वा सुवुत्तमिइवा भवे सुत्तं" ॥ १ ॥ प्राकृत भाषा में जैसे सूत्र शब्द का ‘सुत्त' प्रयोग बनता है, उसी प्रकार सुप्त शब्द का भी ‘सुत्त' प्रयोग होता है और श्रुत शब्द के 'सुय' वा 'सुअ' इस प्रकार के दो प्रयोग बनते हैं। इस स्थान पर अर्थात् उक्त गाथा में जो 'सुत्त' शब्द आया है, वह सूत्र और सुप्त इन दोनों का प्रतिरूप है। तात्पर्य यह है कि उक्त गाथा में आये हुए ‘सुत्त' शब्द के सूत्र और सुप्त ये दो अर्थ हैं। इन्हीं दोनों के प्रतिरूप में 'सुत्त' शब्द प्रयुक्त हुआ है। इसलिए उक्त गाथा की व्याख्या में—“अर्थेनाबोधितं सुप्तमिव सुप्तं प्राकृतशैल्या सुत्तम्” इस प्रकार कहा है। इसका तात्पर्य यह है कि जैसे किसी सोए हुए व्यक्ति को शब्दों के द्वारा जगाया जाता है, ठीक उसी प्रकार अर्थों के द्वारा सुप्त की भांति किसी को जिसका बोध कराया जाए उसे 'सुत्तं'—सूत्र कहते हैं। जैसे सोए हुए व्यक्ति के पास वार्तालाप करने पर भी उसे तब तक भान नहीं होता, जब तक कि उसको जगाया न जाए, इसी प्रकार उच्चारण किए जाने पर भी बिना वृत्ति या व्याख्या अथवा भाष्यादि के जिसके अर्थ का यथार्थ रूप से कुछ भी भान नहीं होता, उसी को सूत्र कहते हैं। यदि संक्षेप से कहें तो “सुप्तमिव सुत्तं' अर्थात् सोए हुए की तरह जो हो उसका नाम सूत्र है। अथवा "सूत्रमिव सूत्रं" अर्थात् तन्तु रूप जो हो उसे सूत्र कहते हैं। सूत्रं नाम तद भवति श्लेषः तन्तुरूपमित्यर्थः। यथा तंतूनां द्वे त्रीणि बहूनि वा वस्तूनि एकत्र संनयन्ते, एवम्केनापि सूत्रेण बहवोऽर्थाः संघात्यन्ते इति सूत्रमिव सूत्रम्) सूत्र नाम तन्तुओं का है सो जैसे एक सूत्र में अनेक वस्तुओं को संग्रहीत किया जाता है, अथवा जैसे एक सूत्र में माला के अनेक मनकों का
१. छाया-
सूत्रं तु सुप्तमेव च, अथवा सूत्रं तु तद् भवति श्लेषः । अर्थस्य सूचनाद्वा, सूक्तमिति वा भवेत् सूत्रम् ॥
श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 22 । प्रस्तावना