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क्या उत्तराध्ययन सूत्र भद्रबाहु रचित है ?
कितने एक विचारक सज्जनों का मत है कि उत्तराध्ययन सूत्र भी भद्रबाहु स्वामी की कृति है, इसीलिए इसका दूसरा नाम " भद्रबाहव" सुनने / देखने में आता है यथा - " भद्रबाहुना प्रोक्तानि भाद्रबाहवानि उत्तराध्ययनानि” अर्थात् भद्रबाहु प्रोक्त होने से उत्तराध्ययन को " भाद्रबाहव" कहते हैं। अतः इस कल्पना के लिए कि उत्तराध्ययन सूत्र भद्रबाहु स्वामी की कृति है, यह पूर्वोक्त प्रमाण अधिक बलवान् है । इस प्रमाण से उत्तराध्ययन का भद्रबाहु स्वामी द्वारा रचा जाना अनायास ही सिद्ध हो जाता है । परन्तु जरा गम्भीरता पूर्वक विचार करने से उक्त कथन में कुछ भी सार प्रतीत नहीं होता । कारण कि 'प्रोक्त' और 'कृत' ये दोनों शब्द समान नहीं है, किन्तु भिन्न-भिन्न अर्थों के वाचक हैं। इनमें प्रोक्त का अर्थ तो व्याख्यात और अध्यापित है तथा कृत का अर्थ नवीन रचना है। इसलिए भद्रबाहु प्रोक्त का अर्थ भद्रबाहु की कृति या रचना विशेष नहीं, किन्तु उनके द्वारा प्रचारित होना अर्थ है। तात्पर्य यह है कि भद्रबाहु स्वामी ने उत्तराध्ययन की रचना नहीं की, किन्तु व्याख्यान और अध्यापन द्वारा जनता में इसका पर्याप्त रूप से प्रचार किया। उनके द्वारा किए जाने वाले विशिष्ट प्रचार के कारण ही यह उत्तराध्ययन सूत्र उनके नाम से विख्यात हो गया । इसलिए भद्रबाहु स्वामी उत्तराध्ययन के प्रचारक मात्र थे, न कि रचयिता । इस बात को शाकटायन व्याकरण के' “टः प्रोक्ते ३-१-६६" सूत्र की वृत्ति में आचार्य यक्षवर्मा ने और हैमव्याकरण के "तेन प्रोक्ते ६-३-१८" सूत्र की वृहद्वृत्ति में आचार्य हेमचन्द्र ने विशेष रूप से स्पष्ट कर दिया है, अर्थात् इन दोनों आचार्यों ने प्रोक्त शब्द का अर्थ विशेष रूप से व्याख्यान और अध्यापन ही किया है। इसके अतिरिक्त " तेन प्रोक्तम् ४-३-१०” इस पाणिनीय सूत्र की व्याख्या में तत्त्वबोधिनीकार दण्डी ने भी 'प्रोक्त' शब्द का ऊपर की भांति ही अर्थ किया है। तात्पर्य यह है कि किसी के कहे हुए को कहना — अध्यापन और व्याख्यान द्वारा प्रकाशित करना उसका नाम “प्रोक्त" है, और नवीन रचना "कृति" कहलाती है । इसलिए भद्रबाहु स्वामी उत्तराध्ययन सूत्र के कर्त्ता नहीं, किन्तु व्याख्याता कहे जाते हैं । यदि भद्रबाहु स्वामी इसके कर्त्ता होते तो उन्होंने निर्युक्ति में उत्तराध्ययन के विषय में जो यह लिखा है कि उसके कुछ अध्ययन तो पूर्व से उद्धृत हैं और कुछ जिन -भाषित तथा कई एक प्रत्येक बुद्धादि रचित हैं
१. प्रकर्षेण व्याख्यातमध्यापितं वा प्रोक्तं तस्मिन् ट इति तृतीयान्ताद् यथाविहितं प्रत्ययो भवति । भद्रबाहुना प्रोक्तानि भाद्रबाहवानि उत्तराध्ययनानि ।
२. प्रकर्षेण व्याख्यातमध्यापित वा प्रोक्तं नतु कृतम् । तत्र कृत इत्येव गतत्वात् तस्मिन्नर्थे तेनेति तृतीयान्तान्नाम्नो यथाविहितं प्रत्यया भवन्ति । भद्रबाहुना प्रोक्तानि भाद्रबाहवानि उत्तराध्ययनानि गणधर प्रत्येकबुद्धादिभिः कृतानि तेन व्याख्यातानीत्यर्थः ।
३. तेन प्रोक्तम् ४-३-१० पाणिनिना प्रोक्तं पाणिनीयम् । तेन प्रोक्तम् — प्रकर्षेणोक्तं प्रोक्तमित्युच्यते नतु कृतं । कृते ग्रन्थे इत्यनेन गतार्थत्वात् । प्रोक्तमिति — स्वयमन्येन कृतं, व्याकरणमध्यापनेनार्थव्याख्यानेन वा प्रकाशितमित्यर्थः ।
श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 21
/ प्रस्तावना