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________________ रहने पर भी अपने अर्थ को प्रकाशित कर रहा है। ऐसी जनश्रुति भी है कि अगर कोई परिमाण से अधिक खाता या अधिक काम करता है तो लोग झट कह उठते हैं कि 'इसके मरने के दिन समीप आए हुए हैं।' प्राघुणिक के आने पर उस बकरे की जो दशा होती है, अब उसका वर्णन करते हैं जाव न एइ आएसे, ताव जीवइ से दुही । अह पत्तम्मि आएसे, सीसं छेत्तूण भुज्जई ॥ ३ ॥ . यावन्नत्यादेशः, तावज्जीवति स दुःखी । अथ प्राप्ते आदेशे, शीर्षं छित्त्वा भुज्यते || ३ || पदार्थान्वयः-जाव—जब तक, न—नहीं, एइ—आता, आएसे—आदेश—पाहुना, ताव तब तक, जीवइ–जीता है, से—वह बकरा, दुही—दुखी, अह–अथ, आएसे—पाहुने के, पत्तम्मि—आ जाने पर, सीसं-मस्तक को, छेत्तूण–छेदन करके, भुज्जई-खाया जाता है। ___मूलार्थ जब तक घर में पाहुना अर्थात् मेहमान नहीं आया, तब तक वह बकरा जीता है और मेहमान के आने पर वह दुखी बकरा सिर-छेदन करके खाया जाता है। ___टीका यह बकरा तभी तक आनन्द लूटता और खुशी मनाता है जब तक कि घर में पाहुना नहीं आता और पाहुने के आते ही उसका वह आनन्द एवं खुशी, शोक और दुख के रूप में बदल जाते हैं। उस समय उसका सिर धड़ से अलग करके उसके मेदयुक्त मांस से उस पाहुने के साथ घर के सभी लोग तृप्त हो जाते हैं। ___ तात्पर्य यह है कि रस-गृद्धि का यह अन्तिम परिणाम है। यहां पर इस बात का भी विचार कर लेना चाहिए कि सूत्रकार ने जो बकरे के जीवन-काल में ही उसको दुखी शब्द से निर्दिष्ट किया है, वह भावी दुख को लक्ष्य में रखकर किया है। वर्तमान काल में यद्यपि वह सुखी है तथापि उसका निकट भविष्य दुखपूर्ण होने से उसको दुखी कहा गया है। आगामी दुख का वर्तमान कालीन सुख में उपचार करने से वर्तमान समय के सुख को भी दुखरूप में किसी नय के अनुसार वर्णन किया जा सकता है। ... अब उक्त दृष्टान्त का उपनय करके दिखाते हैं जहा से खलु उरब्भे, आएसाए समीहिए । एवं बाले अहम्मिठे, ईहई नरयाउयं ॥ ४ ॥ यथा स खलूरभ्रः आदेशाय समीहितः । एवं बालोऽधर्मिष्ठः, ईहते नरकायुष्कम् || ४ || पदार्थान्वयः–जहा—जिस प्रकार, से—वह, खलु निश्चयार्थक है, उरब्मे—बकरा, आएसाए मेहमान के लिए रखा हुआ, समीहिए—पाहुने अर्थात् मेहमान को चाहता है, एवं इसी . श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 251 / एलयं सत्तमं अज्झयणं
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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