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अह खुड्डागनियंठिग्णं छठें अन्झयणं
अथ क्षुल्लकनिम्रन्थीयं षष्ठमध्ययनम्
पांचवें अध्ययन में अकाम और सकाम मृत्यु का विस्तृत वर्णन किया गया है। इनमें सकाम-मृत्यु की प्राप्ति प्रायः विरत अर्थात् निवृत्ति-मार्गानुगामी आत्माओं को ही होती है और विरत आत्मा निर्ग्रन्थ ही होते हैं एवं जो निर्ग्रन्थ हैं वे विद्या और चारित्र से युक्त होते हैं, इसलिए अब छठे अध्ययन में उन्हीं निर्ग्रन्थों का वर्णन किया जाता है।
यद्यपि भगवती सूत्र में पांच प्रकार के ही निर्ग्रन्थों का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है, किन्तु यहां पर तो केवल सामान्यतया निर्ग्रन्थों का ही वर्णन किया गया है, इसीलिए इस अध्ययन का नाम भी 'क्षुल्लकनिर्ग्रन्थीय अध्ययन' रखा गया है।
जो निर्ग्रन्थ हैं वे विद्वान होते हैं और जो विद्या से रहित हैं वे इस संसार में नाना प्रकार के दुखों का अनुभव करते हैं यह बात ऊपर कही गई है, इसलिए अब शास्त्रकार पहले इसी विषय में कहते
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जावन्तऽविज्जा पुरिसा, सव्वे ते दुक्खसंभवा । लुप्पन्ति बहुसो मूढा, संसारम्मि अणन्तए ॥ १ ॥
यावन्तोऽविद्याः पुरुषाः, सर्वे ते दुःखसंभवाः ।
लुप्यन्ते बहुशो मूढाः, संसारेऽनन्तके || १ || पदार्थान्वयः–जावंत—जितने, अविज्जा–विद्या से रहित, पुरिसा-पुरुष हैं, सव्वे सारे, ते—वे, दुक्खसंभवा—दुखों को प्राप्त करने वाले हैं, बहुसो—बहुत बार, मूढा—मूढ़, अणन्तए-अनन्त, संसारम्मि–संसार में, लुपंति—दारिद्रयादि दुखों से पीड़ित होते हैं। ___ मूलार्थ यावन्मात्र अविद्वान् पुरुष हैं वे सब दुखों को प्राप्त करने वाले हैं, वे मूढ़ ही बहुत बार दुखों से अनन्त संसार में पीड़ित होते हैं। टीका—इस गाथा में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस अनन्त संसार में जितने भी
श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 230 / खुड्डागनियंठिज्जं छठें अज्झयणं ।