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________________ अन्नयरं—किसी एक मृत्यु के द्वारा, मुणी—साधु, तिबेमि–'त्ति' समाप्ति अर्थ में 'बेमि' मैं कहता हूं। ___ मूलार्थ काल के सम्प्राप्त होने पर संलेखना आदि के द्वारा शरीर का अन्त करता हुआ साधु मृत्यु के तीन प्रकारों में से किसी एक के द्वारा सकाम-मृत्यु को प्राप्त करे। टीका—शास्त्रकारों ने तीन प्रकार से सकाम-मृत्यु की प्राप्ति का वर्णन किया है। यथा-१. भक्त-प्रत्याख्यान, २. इंगित-मरण और ३. पादपोपगमन । जिसमें चतुर्विध आहार का परित्याग हो उसे भक्त-प्रत्याख्यान कहते हैं। चार प्रकार के आहार के बाद भूमि का परिमाण करना निश्चित की हुई भूमि से बाहर न जाने का प्रण करना इंगितमरण है और वृक्ष की कटी हुई शाखा की तरह एक ही स्थान में स्थिर पड़े रहने को पादपोपगमन कहते हैं। सो मृत्यु-समय के अति निकट आने पर संलेखना आदि के द्वारा औदारिक, तैजस और कार्मण शरीरों का अन्त करता हुआ साधु भक्तप्रत्याख्यानादि में से किसी एक के द्वारा सकाम-मृत्यु को प्राप्त करे। शास्त्रकारों ने उत्कृष्ट संलेखना की काल-मर्यादा १२ वर्ष की रखी है, अतः यथावसर और यथाशक्ति संलेखना करके सकाम-मृत्यु को प्राप्त करने का यत्न होना चाहिए। प्रसन्नता-पूर्वक प्राप्त हुई यह मृत्यु कर्मों की अनन्त वर्गणाओं को क्षय करने में निमित्त होती है, इसलिए भव्य जीवों को उसकी प्राप्ति का अवश्य यत्न करना चाहिए। ___ 'मरणं', अन्नयरं' इन दोनों पदों में तृतीया के अर्थ में प्रथमा विभक्ति समझना चाहिए। 'त्ति बेमि' का अर्थ पहले आ ही चुका है। . पंचम अध्ययन संपूर्ण श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 229 /अकाममरणिज्जं पंचमं अज्झयणं
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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