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छंदोनिरोधेनोपैति मोक्षं, अश्वो यथा शिक्षित-वर्मधारी ।
पूर्वाणि वर्षाणि चरेदप्रमत्तः, तस्मान्मुनिः क्षिप्रमुपैति मोक्षम् || ८ || पदार्थान्वयः-छंदं—अपनी इच्छाओं के, निरोहेण निरोध से, मोक्खं—मोक्ष को, उवेइ—प्राप्त होता है, आसे-घोड़ा, जहा—जैसे, सिक्खिय–शिक्षित किया हुआ, वम्मधारी—कवच के धारण करने वाला, पुव्वाइं—पूर्वो तक, वासाइं—वर्षों तक, चरे–विचरे, अप्पमत्तो—प्रमाद से रहित होकर, तम्हा—इसलिए, मुणी–साधु, खिप्पं शीघ्र ही, मोक्खं मोक्ष को, उवेइ—पाता है । ____ मूलार्थ कवच-युक्त सुशिक्षित घोड़े की तरह इच्छाओं का निरोध करने वाला मुनि मोक्ष को प्राप्त कर लेता है और जिससे कि वह पूर्वो और वर्षों तक अप्रमत्त रहकर संयम-मार्ग में विचरता हुआ शीघ्र ही मोक्ष को पा लेता है।
टीका—जो जीव अपनी समस्त इच्छाओं का निरोध करने वाला और गुरुजनों की सेवा में तत्पर रहने वाला, उनकी आज्ञा के अनुसार आचरण करने वाला होता है वह अन्त समय में मोक्ष-गति को प्राप्त कर लेता है, क्योंकि इच्छाओं का निरोध और गुरुजनों की सेवा, ये दोनों ही शुभ क्रियाएं कर्म-निर्जरा की हेतु हैं, इसलिए इन दोनों का अन्तिम फल मोक्ष बताया गया है।
जिस प्रकार कवच धारण किए हुए शिक्षित घोड़ा संग्राम में जाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके संग्राम से छुटकारा पा लेता है और सुखपूर्वक रहता है, उसी प्रकार गुरुजनों की सेवा में रहने वाला प्रमाद-रहित मुनि भी अपनी इच्छाओं के निरोध से मुक्तदशा को प्राप्त कर लेता है। जैसे अशिक्षित और अविनयी घोड़ा अपने स्वामी की इच्छा के प्रतिकूल एवं स्वच्छन्द होकर संग्राम भूमि में इधर-उधर घूमता-फिरता हुआ वहीं पर शत्रु के द्वारा मारा जाता है उसी प्रकार गुरुजनों की आज्ञा के प्रतिकूल चलने वाला स्वेच्छाचारी शिष्य भी संयम-मार्ग से भ्रष्ट होकर संसार-चक्र में परिभ्रमण करने लग जाता
- इसी आशय से शास्त्रकार उपदेश देते हैं कि 'हे शिष्य! तू पूर्वो और वर्षों तक अप्रमत्त रहकर संयम का आचरण कर एवं जो मुनि प्रमाद-रहित होकर संयम की आराधना करता है, वह शीघ्र ही मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।'
सारांश यह है कि इच्छाओं का निरोध और गुरुजनों की भक्ति ये दो ही मुख्य मार्ग हैं जिनका कि मोक्षपुरी के साथ सीधा सम्बन्ध है तथा इन पर चलने वाला पुरुष शीघ्र-से-शीघ्र मोक्ष-मन्दिर तक पहुंच जाता है।
यहां पर पूर्वो तक जो संयम के पालन करने का आदेश दिया गया है, उसका अभिप्राय यह है कि संयम-वृत्ति का सद्भाव पूर्वो तक रहता है, यह बात प्रमाणित हो सके।
यदि कोई व्यक्ति यह कहे कि अगर इच्छाओं के निरोध से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है तो इच्छाओं का निरोध हम अन्त समय में कर लेंगे, अब इस विषय पर शास्त्रकार लिखते हैं
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श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 189 / चउत्थं असंखयं अज्झयणं
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