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अथवा नीच, ऐसी कोई भी जाति नहीं जिसमें इस जीव ने अनेकानेक बार जन्म अथवा मरण न किया हो । इस प्रकार निरन्तर भ्रमण करते हुए भी इस जीव को उपरति नहीं होती
अब इसी विषय में पुनः कहते हैंएवमावट्ट जोणीसु, पाणिणो कम्मकिदिवसा । . न निविज्जन्ति संसारे, सव्वढेसु व खत्तिया ॥ ५ ॥
एवमावर्त्तयोनिषु, प्राणिनः कर्मकिल्विषाः ।
. न निर्विद्यन्ते संसारे, सर्वार्थेष्विव क्षत्रियाः ॥ ५ ॥ पदार्थान्वयः--एवं-इस प्रकार, पाणिणो—प्राणी, कम्म-किव्विसा–दुष्टकर्म करने वाले, संसारे संसार में, आवट्ट-आवर्तन करते हुए, जोणीसु–योनियों में, न निविज्जति–निवृत्त नहीं होते, सव्वढेसु–सर्व अर्थों में, व—जैसे, खत्तिया क्षत्रिय लोग।
मूलार्थ-जैसे समस्त पदार्थों की प्राप्ति होने पर भी क्षत्रिय अर्थात् राजा लोगों को बड़े राज्य की प्राप्ति से भी तृप्ति नहीं होती, इसी प्रकार संसार में दुष्ट कर्म करने वाले प्राणी नाना प्रकार की योनियों में भ्रमण करते हुए भी निवृत्त नहीं होते।
टीका-जैसे राजा के अधिकार में अनेकानेक देशों के आ जाने पर भी उसकी लालसा की तृप्ति नहीं होती, किन्तु और अधिकाधिक अधिकारों को पाने के लिए इच्छाएं लालायित रहती हैं, इसी प्रकार यह जीव भी संसार-चक्र में भ्रमण करता हुआ और दुष्कर्मों के प्रभाव से नाना प्रकार के दुःखों • का अनुभव करता हुआ इस संसार से उपराम होने की भावना को अपने अन्तःकरण में जागृत नहीं करता, किन्तु इसके विपरीत उसमें अधिकाधिक विलीन ही होता हुआ दिखाई देता है।
यहां पर गाथा में आए हुए 'क्षत्रिय' शब्द से केवल क्षत्रिय जाति में उत्पन्न होने वाले व्यक्ति विशेष का ग्रहण अभिप्रेत नहीं है, किन्तु 'क्षतात्-भयात् त्रायते इति क्षत्रियः' इस व्युत्पत्ति के द्वारा भय से रक्षा करने वाले का नाम क्षत्रिय होने से चाहे किसी भी वर्ण का पुरुष राज्याधिकार में नियुक्त हुआ हो और उसमें राज्य-योग्य गुणों की विद्यमानता हो तो गुणों की अपेक्षा से उसे भी क्षत्रिय ही कह सकते हैं, इसी अर्थ में यहां पर क्षत्रिय शब्द का प्रयोग किया गया है।
जो लोग संसार से निवृत्त नहीं होते, उन्हें किस फल की प्राप्ति होती है, अब इस विषय का वर्णन यहां पर किया जाता है।
कम्म-संगेहिं सम्मूढा, दुक्खिया बहुवेयणा । अमाणुसासु जोणीसु, विणिहम्मन्ति पाणिणो ॥ ६ ॥
कर्मसंगैः संमूढाः दुःखिता बहुवेदनाः । - अमानुषीषु योनिषु, विनिहन्यन्ते प्राणिनः ॥ ६ ॥
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श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 163 । तइअं चाउरंगिज्जं अज्झयणं
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