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• नया चिन्तन ]
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बरसता है, वह सारा सचित्त है, ऐसा भी नहीं है। वह अचित्त भी हो सकता है, पर हमें पता नहीं लगता। अग्नि और वायुकाय भी सचित्त और अचित्त दोनों प्रकार के होते है।
एक नियम है - शस्त्र परिणत होने पर सचित्त अचित्त बन जाता है। सजीव, निर्जीव बन जाता है। इस प्रारम्भिक आगमिक वर्णन को आधार बनाकर वे आगे लिखते हैं कि हमें विद्युत् के प्रश्न पर विचार करना है। विद्युत् सचित्त है या अचित्त? ____ आज बिजली का प्रयोग बहुत होता है। पूज्य गुरुदेव के शासनकाल में चिन्तन चला कि बिजली सजीव है या निर्जीव? पूज्य गुरुदेव बीदासर में विराज रहे थे। वहीं तीन दिनों तक हजारों व्यक्तियों के बीच चिन्तन चला, पक्ष-विपक्ष में बहुत से तर्क आए। आखिर निर्णय हुआ कि बिजली सजीव नहीं है। बिजली ऊर्जा है, जीव नहीं है, विद्युत् को निर्जीव किस आधार पर माना गया? आखिर आधार क्या है? आधार दोनों है। आगम का आधार है। उससे भी बिजली निर्जीव सिद्ध होती है। वर्तमान के विज्ञान का तो है ही। विज्ञान ने तो इसे एक रासायनिक क्रिया माना है। वैज्ञानिक अग्नि को भी जीव नहीं ' मानते तो भला बिजली का तो प्रश्न ही नहीं।
हम आगम के आधार पर विचार करें। तैजसकाय के पुद्गल पूरे लोक में व्याप्त हैं। आठ वर्गणाओं में एक वर्गणा है तैजस वर्गणा। उसके पुद्गल पूरे
लोक में व्याप्त हैं। अग्नि कैसे होती है और अग्नि कहाँ होती है? इस पर '. आगम में विचार किया गया। बतलाया गया कि सजीव अग्नि तिर्यक् लोक में
ही हो सकती है। न ऊंचे लोक में अग्नि है, न नीचे लोक में है। वहाँ अग्नि नहीं, ऊर्जा है। उसे अग्नि कहते हैं पर वास्तव में सचित्त अग्नि नहीं है। सचित्त अग्नि केवल मनुष्य लोक में, तिरछे लोक में ही हो सकती है। कह सकते हैं कि नरक लोक में तो बहुत तेज अग्नि है। सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन आदि में वर्णन मिलता है कि नरक लोक में कोई नैरयिक जीव है, उसे निकाल कर यहां की अग्नि में डाल दिया जाए तो उसे लगेगा कि जैसे हिमालय में डाल दिया गया हो। इतनी भयंकर अग्नि का ताप है वहां पर वह निर्जीव है, सजीव नहीं है, क्योंकि तिरछे लोक से नीचे सजीव अग्नि होती नहीं है। इसीलिए सूत्रकृतांग में कहा गया - अगणी अकट्ठो, बिना ईंधन की अग्नि, बिना काष्ठ की अग्नि । 'अग्नि' शब्द का प्रयोग तो किया गया है, पर वास्तव में अग्निकायिक जीव नहीं है। बिजली भी अग्निकायिक जीव नहीं है।