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________________ - नया चिन्तन ] 8. तेणं कालेणं, तेणं समएणं जैन आगम भगवती सूत्र में, किसी भी घटना या स्थान का वर्णन करते समय प्रायः काल और समय का उल्लेख निम्न प्रकार से किया है। 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' अर्थात् उस काल और उस समय में । सामान्यतया काल और समय को एकार्थक ही कहा जाता है। यह जिज्ञासा सदैव बनी रही कि इन दो शब्दों का उल्लेख क्यों हुआ है? काल को प्रलम्ब कालखण्ड का और समय को निश्चित कालावधि का सूचक माना प्रतीत होता है। सूत्र के वृत्तिकार के अनुसार 'काल' पद के द्वारा वर्तमान अवसर्पिणी के चतुर्थ विभाग (चौथा आरा) का बोध होता है और 'समय' पद के द्वारा उस कालखण्ड का बोध होता है जिसमें भगवान महावीर ने प्रवचन किया था । से [ 61 काल और समय के साथ-साथ देश (स्थान) का भी निर्देश निम्न प्रकार है । हुआ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था । उस काल और उस समय में राजगृही नामक नगर था । (ii) तेणं कालेणं तेणं समएणं तुंगिया नामं नयरी होत्था । उस काल और उस समय में तुंगिया नामक नगरी थी I (i) इस संबंध में यह प्रश्न बना रहा कि देश और काल को किसी वर्णन से पूर्व लिखना, कोई लेखन शैली थी या कोई सैद्धान्तिक आवश्यकता थी ? . आचार्य महाप्रज्ञ ने इसकी तुलना वर्तमान विज्ञान की देश-काल की धारणा से की है। वे लिखते हैं कि आइंस्टीन के सापेक्षवाद के अनुसार देश और काल निरपेक्ष किसी वस्तु या घटना को समझना संभव नहीं है। जर्मन दार्शनिक इम्मेन्युअल कांट ने भी देश और काल को बहुत महत्त्व दिया है। आचार्य सिद्धसेन ने भी अर्थ बोध के लिए काल और क्षेत्र को अनिवार्य माना है । काल की अवधारणा विज्ञान जगत में काल की अवधारणा रेखाकार है। उसमें सदा आगे की ओर ही गति होती है । काल की दूसरी अवधारणा वृतुलाकार है । उसमें गति आगे भी होती है और पीछे भी होती है । जैसे मरने के बाद पुनः जन्म होना, काल की पीछे की ओर गति है । पुनर्जन्म का सिद्धान्त काल की
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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