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[ जैन विद्या और विज्ञान .
मनोविज्ञान के अनुसार संवेग का उद्गम स्थान हाइपोथेलेमस (Hypothalamus) माना जाता है। यह मस्तिष्क के मध्य भाग में होता है। यही संवेग का संचालन और नियन्त्रण करता है। यदि इसको काट दिया जाए तो सारे संवेग नष्ट हो जाते हैं।
भाव रागात्मक होता है। उसके दो प्रकार हैं – सुखद और दुःखद । उसकी उत्पत्ति के लिए बाह्य उत्तेजना आवश्यक नहीं होती। आचार्य महाप्रज्ञ ने ओघ और लोक संज्ञाओं का विज्ञान और मनोविज्ञान की दृष्टि में नया दृष्टिकोण दिया है। 7. व्यावहारिक परमाणु
अनुयोगद्वार आगम में परमाणु दो प्रकार के बतलाएं हैं। सूक्ष्म और व्यावहारिक। सूक्ष्म परमाणुओं के समुदाय से व्यावहारिक परमाणु बनता है। निश्चय नय की अपेक्षा से वह अनन्त प्रदेशी स्कन्ध हैं। प्रायः यह माना जाता रहा है कि विज्ञान सम्मत परमाणु व्यावहारिक परमाणु के समतुल्य होना चाहिए क्योंकि सूक्ष्म परमाणु विभाजित नहीं होता। प्रश्न यह बना हुआ है कि व्यावहारिक परमाणु यद्यपि अनन्त प्रदेशी स्कन्ध रूप है फिर भी इतना बड़ा नहीं है कि उसका विभाजन किसी बाह्य शस्त्र से किया जा सके इस प्रकार व्यावहारिक परमाणु की विज्ञान सम्मत परमाणु से समतुल्यता स्थापित नहीं होती।
इसकी मीमांसा करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने स्थापना की है कि "व्यावहारिक परमाणु शस्त्र से नहीं टूटता है। लेकिन" आगम साहित्य में असिधारा से परमाणु छिन्न-भिन्न नहीं होता, यह कहा गया है। असि की धारा बहुत स्थूल होती है इसलिए उससे परमाणु का विभाजन नहीं होता, यह सही है। आधुनिक विज्ञान ने बहुत सूक्ष्म उपकरण विकसित किए हैं। उनसे व्यावहारिक परमाणु के विभाजन की संभावना की जा सकती है।
विज्ञान के क्षेत्र में परमाणु अब पदार्थ का सूक्ष्मतम कण नहीं रहा है। बीसवीं सदी के प्रारम्भ में इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और बाद में न्यूट्रॉन भी परमाणु परिवार के अंश माने गए। पिछले कुछ वर्षों से क्वार्क की खोज ने, परमाणु के सूक्ष्मतम होने पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। जैन दर्शन सम्मत परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म है इसलिए व्यावहारिक परमाणु की तुलना विज्ञान सम्मत-परमाणु से की जा सकती है।