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________________ नया चिन्तन] [59 2. अमरीका आदिवासियों में तो इस छठी इन्द्रिय के लिए एक विशिष्ट नाम का प्रयोग होता है और वह है शुम्फो । लोकसंज्ञा - विशेष अवबोध क्रिया, ज्ञानोपयोग और विशेष प्रवृत्ति किया है। ओघसंज्ञा के संदर्भ में इसका अर्थ विभागात्मक ज्ञान (इन्द्रियज्ञान और मानसज्ञान) किया जा सकता है। शीलांकसूरि ने आचारांग वृत्ति में लोकसंज्ञा का अर्थ लौकिक मान्यता किया है। किन्तु वह मूलस्पर्शी अर्थ प्रतीत नहीं होता। आचार्य महाप्रज्ञ ने इसकी मनोवैज्ञानिक विवेचना की है। वे लिखते हैं - प्रस्तुत प्रसंग में कुछ मनोवैज्ञानिक तथ्य भी ज्ञातव्य है। मनोविज्ञान ने मानसिक प्रतिक्रियाओं के दो रूप माने हैं - भाव और संवेग |भाव सरल और प्राथमिक मानसिक प्रतिक्रिया है। संवेग जटिल प्रतिक्रिया है। भय, क्रोध, प्रेम, उल्लास, हास, ईर्ष्या आदि को संवेग कहा जाता है। उसकी उत्पत्ति मनोवैज्ञानिक परिस्थिति में होती और वह शारीरिक और मानसिक यंत्र को प्रभावित करता है। संवेग के कारण बाह्य और आन्तरिक परिवर्तन होते हैं। बाह्य परिवर्तनों में ये तीन मुख्य है - 1. मुखाकृति अभिव्यंजन (Facial expression) 2. स्वराभिव्यंजन (Vocal expression) 3. शारीरिक स्थिति (Bodily posture) आन्तरिक परिवर्तन . 1. श्वास की गति में परिवर्तन (Changes in respiration) 2. हृदय की गति में परिवर्तन (Changes in heart beat) 3. रक्तचाप में परिवर्तन (Changes in blood pressure) .. 4. पाचन क्रिया में परिवर्तन (Changes in gastro intestinal or digestive function) · 5. रक्त में रसायनिक परिवर्तन (Chemical Changes in blood) 6. मानस-तरंगों में परिवर्तन (Changes in Brain waves) 7. ग्रन्थियों की क्रियाओं में परिवर्तन (Changes in the activities of the glands)
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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