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________________ 56] [जैन विद्या और विज्ञान , (i) श्वास के द्वारा - श्वास प्रेक्षा से, श्वास दर्शन के साथ हमारे जो प्रकम्पन होते हैं वे कर्म-शरीर तक पहुंचते हैं और वहां शोधन करते हैं। (ii) संकल्प के द्वारा - संकल्प के साथ सूक्ष्म प्रकम्पन शुरु हो जाता है, स्पन्दन शुरु हो जाता है। प्रक्रिया चलते-चलते एक समय ऐसा आता है कि उस भाव में परिणमन हो जाता है। जो आकार का रूप लेता है यह विचार का आकार है। निर्जरा और कर्म शोधन इसी प्रकरण के अन्तर्गत आचार्य महाप्रज्ञ निर्जरा और कर्म शोधन के. सम्बन्ध को स्पष्ट करते हैं। वे कहते हैं कि - व्यक्ति ने उपवास. किया, खाना नहीं खाया यह हमारी स्थूल क्रिया है लेकिन उसने नहीं खाने का जो संकल्प किया उस संकल्प के परमाणु जो प्रकम्पन पैदा करते हैं, वे प्रकम्पन सूक्ष्म शरीर को प्रकम्पित कर देते हैं और निर्जरा हो जाती है। एक व्यक्ति उपवास करता है और बहुत कष्ट का अनुभव करता है। एक व्यक्ति उपवास करता है, पता ही नहीं चलता। अब प्रश्न होगा कि शोधन किसका ज्यादा हुआ? इसका उत्तर हम कष्ट के आधार पर दें तो बड़ी समस्या है। इसका अर्थ यह हो गया कि जितना कष्ट भोगो उतना ही लाभ है। जबकि जैन दर्शन का सिद्धान्त ही नहीं है कि शरीर को कष्ट दो। कष्ट दो तो फिर मोक्ष का सुख क्यों? पाना चाहते हो सुख और शरीर को कष्ट देते हो क्या यह मूर्खता की बात नहीं है? जो सुख है, सुख के द्वारा मिल सकता है, कष्ट के द्वारा कैसे मिलेगा? उपवास का संकल्प करते समय जिस व्यक्ति ने शक्तिशाली प्रकम्पन पैदा कर दिए चाहे कष्ट न हुआ फिर भी उसके अधिक निर्जरा या शोधन हो जाएगा। जिसका संकल्प कमजोर है, वह चाहे सारे दिन कष्ट भोगता रहा लेकिन निर्जरा उसकी तुलना में नहीं आ सकती। यह हमारे प्रकम्पनों को पैदा करने के श्रम पर निर्भर है कि किस व्यक्ति ने किस क्षण में कितने ज्यादा शक्तिशाली प्रकम्पन पैदा किए। यह प्रकम्पन भीतर जाकर कर्म-शरीर को प्रकम्पित करते हैं और वहां जो विजातीय कर्म का कण जमा हुआ है, उसका क्षरण और निर्जरण कर देते हैं। कायोत्सर्ग इसका आलम्बन है क्योंकि इस अवस्था में सुझाव का प्रयोग सफल होता है। सुझाव की परिवर्तन में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सुझाव के द्वारा परिवर्तन होता है।
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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