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________________ 48] [ जैन विद्या और विज्ञान . जागरूक होना भी है। यह जागरूकता आत्म-तुला के सिद्धान्त से विकसित होती है। विश्व मैत्री का संयम की चेतना से गहरा संबंध है अतः इस संबंध में हम विस्तार से चर्चा करेंगे। संयम की चेतना आचार्य महाप्रज्ञ विश्व-मैत्री के व्यापक स्वरूप को प्रकट करते हुए कहते हैं कि "किसी प्राणी को मत मारो यह अहिंसा-मैत्री की सीमा नहीं है। शस्त्र का निर्माण मत करो, यह भी इसकी सीमा नहीं है। अहिंसा का व्यापक स्वरूप है, संयम की चेतना का निर्माण। हम पर्यावरण को विशुद्ध करने का और निःशस्त्रीकरण का प्रयत्न करते हैं, किंतु चेतना के रूपान्तरण का प्रयत्न नहीं करते। क्या चेतना के रूपान्तरण किए बिना प्रकृति का अतिदोहन, पर्यावरण का प्रदूषण और शस्त्रों का निर्माण रोका जा सकता है? "यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। इसका समाधान संयम की चेतना के निर्माण में ही है। संयम के द्वारा व्यक्ति अपने स्वभाव की पहचान बनाए रख सकता है। यह स्वयं का हित है और अमर्यादित न होने के कारण वह दूसरों के जीवन में अहित नहीं करता। समता-संयम प्रतिष्ठित व्यक्ति के लिए संसार का छोटे से छोटा प्राणी, यहां तक कि सामान्य वनस्पति भी, अवध्य हो जाती है। किसी प्राणी के वध से द्विविध प्रभाव होता है, एक तो उस प्राणी की मृत्यु और दूसरा उस वध-कर्ता की आत्मा के स्वाभाविक स्वरूप का हनन - आचार्य महाप्रज्ञ ने इस तथ्य को वैज्ञानिक पर्यावरण-विज्ञान (Ecology) के सिद्धान्त से अधिक बोधगम्य बनाया है। पर्यावरण विज्ञान के अनुसार प्रकृति का कोई भी अंश यदि अस्त-व्यस्त रहता है तो प्रकृति का सारा चक्र ही अस्त-व्यस्त हो जाता है। पर्यावरण - विज्ञान का नया आयाम __ पर्यावरण विज्ञान का नया आयाम है। पहले के जमाने में मनुष्य पर ही ध्यान था और माना जाता था कि मनुष्य ही सब कुछ है। फिर दूसरे प्राणियों पर ध्यान गया कि मनुष्य के लिए पशु उपयोगी हैं। पशुओं का मूल्यांकन किया गया किंतु इस 'इकोलॉजी' ने एक नया आयाम खोल दिया। यह बात मान्य हो गई कि प्रकृति का छोटा-मोटा - प्रत्येक अवयव उपयोगी है, अनिवार्य है। अभी-अभी पर्यावरण-विशेषज्ञों ने आंकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज वनस्पति की बीस हजार उपजातियां उपलब्ध हैं। यदि उनकी सुरक्षा नहीं की गई तो बहुत बड़ी निधियां समाप्त हो जाएंगी। आज तक यह जाना ही नहीं गया कि किस वनस्पति में क्या विशेषता है? ऐसी वनस्पतियां हैं जिनमें
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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