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________________ नया चिन्तन ] [43 दूसरों का अहित चिंतन करना एक निषेधात्मक भाव है । मस्तिष्क विद्या के अनुसार हमारे मस्तिष्क में अनेक रसायन होते हैं । उनमें कुछ रसायन विष तुल्य होते हैं और कुछ रसायन, अमृत तुल्य होते हैं। शरीर को पोषण देने वाले रसायन अमृत के समान होते हैं। हम जो बाहर से खाते हैं इससे हमारा सारा काम नहीं चलता है वह तो मात्र तीस अथवा चालीस प्रतिशत है । साठ अथवा सत्तर प्रतिशत काम भीतर के रसायनों से चलता है । यह शरीर अनेक प्रकार के विटामिन्स, प्रोटीन्स बनाता है। उस शरीर के अंदर एक बड़ा कारखाना चल रहा है जो हर समय आवश्यकतानुसार रसायन पैदा करता रहता है। पाठकों के लिए एक महत्त्वपूर्ण रसायन एण्डोरफिन की हम चर्चा करेंगे। एण्डोरफिन रसायन विज्ञान जगत का एक प्रसिद्ध शब्द है एन्डोरफिन रसायन । जब कष्ट आता है उस समय बड़ी पीड़ा होती है। जब वह पीड़ा सहन नहीं की जा सकती उसी वक्त शरीर एन्डोरफीन रसायन को मस्तिष्क में पैदा करता तो पीड़ा कम हो जातीं है। एन्डोरफिन रसायन एक तरह से अफीम में मौजूद दर्द निवारक रसायन से मिलते-जुलते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि शरीर में दर्द अनुभव होने पर, शरीर अफीम की तरह के रसायन बनाता है जिससे पीड़ा कम अनुभव होती है। लेकिन एन्डोरफिन एक सीमित मात्रा तक ही उत्पादित होते हैं अतः अधिकांश दर्द जो मध्यम या गहन तीव्रता के होते हैं, शरीर में एन्डोरफिन बनाने के बावजूद भी शरीर अपने आप पूर्णतया आराम नहीं दे पाता है। हल्की पीड़ा, एन्डोरफिन के प्रभाव से स्वतः बंद हो जाती है। अतः हम यह जाने कि यह शरीर, शामक औषधियां और पेन• किलर भी पैदा करता है । इसी प्रकार बाहर से ग्लूकोज दिया जाता है पर शरीर स्वयं ग्लूकोज पैदा करता है। उपर्युक्त शारीरिक रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से आचार्य महाप्रज्ञ समझाते हैं कि जब भी मन में किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति बुरा भाव आएगा, बुरा विचार आएगा तो मस्तिष्क ऐसा रसायन पैदा करेगा जो शरीर को हानि पहुंचाएगा। इस प्रकार वैर-विरोध करने वाला किसी दूसरे का अहित नहीं करता, स्वयं का अहित करता है। दूसरे का अहित होगा या नहीं, किंतु अपना अहित निश्चित कर लेगा ।
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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