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________________ 38] [ जैन विद्या और विज्ञान भौतिक विज्ञान भौतिक विज्ञान ने इस सृष्टि का प्रारम्भ 'बिग-बैंग' से माना है। उसी समय पदार्थ-रचना के मूल कण क्वार्क भी उत्पन्न हुए हैं। वास्तविकता यह है कि क्वार्क के कण सभी समान न होकर, विरोधी गुणों वाले उत्पन्न हुए और उसी से पदार्थ रचना हुई। क्वार्क से पूर्व, विज्ञान जगत में यह माना जा रहा था कि परमाणु की संरचना, दो विरोधी विद्युतीय कणों से हुई है। वे हैं - इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन। इलेक्ट्रॉन ऋण विद्युतीय कण हैं और प्रोटॉन धन विद्युतीय कण हैं। परस्पर में विरोधी गुणों का होना, इस प्रकृति की देन है। विज्ञान जगत में हलचल मची थी जब प्रकाश के व्यवहार में ज्ञात हुआ कि वह कण रूप व्यवहार करता है और लहर रूप भी व्यवहार करता है। इस द्वैध के कारण भौतिक विज्ञान की प्रगति रुक सी गई थी तब यह स्वीकार किया गया कि जहाँ कण हैं वहाँ लहर है और जहाँ लहर है वहाँ कण है। इसी समन्वय को लेकर विज्ञान की प्रगति हुई है। भौतिक विज्ञान के अनुसार किसी भी परमाणु के दो इलेक्ट्रॉन पूर्ण रूप से समान . नहीं होते। असमानता के होते हुए भी, सह-अस्तित्व की प्रकृति पदार्थ के मूल में है। __ इस प्रकार हम पाते हैं कि 'महाप्रज्ञ का सह-प्रतिपक्ष का सिद्वान्त' सार्वभौमिक है। "To deny the co-existence of mutually conflicting view points about a thing would mean to deny the true nature of reality."
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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