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नया चिन्तन]
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शरीर शास्त्र के उदाहरण
आचार्य महाप्रज्ञ ने अस्तित्वगत इस सत्य को इस विविधता से प्रतिपादित किया है कि अब इसका स्वरूप एक सिद्धान्त के रूप में प्रकट होता है। अतः यह कहना उपयुक्त होगा कि “महाप्रज्ञ का सह-प्रतिपक्ष का सिद्धान्त” ने दर्शन जगत को महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। विज्ञान जगत में परम्परा है कि जो नई खोज करते है उन्हीं के नाम से वह सिद्धान्त प्रचलित हो जाता है। उनकी यह विलक्षणता है कि उन्होंने इस सिद्धान्त के अनुरूप, शरीर शास्त्र के उदाहरण भी प्रस्तुत किए हैं। (i) शरीर शास्त्र के अनुसार वे लिखते हैं - शरीर में दो केन्द्र है।
एक - ज्ञान केन्द्र और दूसरा - काम केन्द्र। दोनो विरोधी है। __. काम केन्द्र चेतना को नीचे ले जाता है। ज्ञान केन्द्र चेतना को
ऊपर ले जाता है। एक है अधोगमन और दूसरा है ऊर्ध्वगमन। चेतना का नीचे का अवतरण और चेतना का ऊध्र्व अवतरण दोनों
विरोधी है। यही जीवन को टिकाए हुए है। विज्ञान की भाषा में .. ज्ञान-केन्द्र और काम-केन्द्र के वाचक दो ग्लैण्डस है। एक है
पीनियल, पिट्यूटरी ग्लैण्ड और दूसरा है गोनाड्स। पीनियल और पिट्यूटरी - ये दोनों ज्ञान के विकास की ग्रन्थियां है। गोनाड्स - यह काम विकास की ग्रन्थि है। हमारी चेतना का विकास पीनियल और पिट्यूटरी के विकास पर निर्भर है। पिट्यूटरी और पीनियल का स्राव जब गोनाड्स को मिलता है तब काम की उत्तेजना बढ़ती है। जब वह स्राव बदलता है हाईपोथेलेमस की क्रिया बदलती है तब ज्ञान का विकास होने लग जाता है। दोनों विरोधी ग्लैण्डस की प्रकियाएं हमारे शरीर की संरचना में समाई हई है। दोनों ग्रथियां अपना-अपना काम करती
हैं यद्यपि दोनों विरोधी हैं। (ii) हमारे शरीर में खरबों कोशिकाएँ हैं। प्रति सैकण्ड पांच करोड़
कोशिकाएं नष्ट होती हैं और पांच करोड़ कोशिकाएं उत्पन्न होती हैं। यह अस्तित्व बना रहता है। जन्मना और मरना, पैदा होना
और नष्ट होना। कोशिकाएं नष्ट हों तो शरीर मुर्दा बन जाता है। कोशिकाएं पैदा न हों तो शरीर टूट जाता है।
दोनों चालू रहते हैं, तब शरीर टिकता है। (iii) मनोविज्ञान की दृष्टि से उल्लेख किया है कि जीन में दो प्रकार
की विशेषताएं होती हैं। माता-पिता के गुण संतान में संक्रान्त होते ... हैं, विरोधी गुण भी संक्रांत होते हैं। उसमें एक प्रभावी होता है और