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जैन विद्या और विज्ञान का सामान्य परिचय ]
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(i) प्रकृति का दर्शन - जैन धर्म ने प्रकृति और पदार्थ के सम्बन्ध में,
मनोविज्ञान और जीवन के सम्बन्ध में, जिन सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया है वे आज की वैज्ञानिक विचारों और सिद्धान्तों से साम्य भी रखते है तो कहीं अंतर भी है। जैसे हम पाते है कि वर्तमान विज्ञान उन सूक्ष्म कणों को समझने लगा है जो भारहीन है (फॉटोन, ग्रेवीटोन, ग्लूआँन आदि)। भारहीन कणों का सन्दर्भ जैन दर्शन में आत्मा से जुड़े कर्मो से साम्य प्रस्तुत करता है। जैन कर्म सिद्धान्त के अनुसार कर्म वर्गणाएं भारहीन हैं। कर्म वर्गणाओं में गुरु और लघु स्पर्श का अभाव है। भारहीनता का महत्त्व जैन दृष्टि से इसलिये महत्त्वपूर्ण हैं कि उसके बिना आत्म अस्तित्व को समझना कठिन है। जैन आगमों का गहराई से अध्ययन करने पर हम पाएंगे कि इसमें दर्शन की सुदृढ़ता के लिए विज्ञान और गणित दोनों की चर्चा हुई है। अतः वर्तमान में जैन दर्शन और विज्ञान का परस्पर में सामीप्य प्रकट होता है। .. आइंस्टीन ने कहा कि “जहां 'संहति' (mass) है, वहां पदार्थ है, जहां पदार्थ है, वहां 'संहति' (mass) है अर्थात् भार और पदार्थ की एकरूपता मानी गई। जैन साहित्य में भारहीनता का उल्लेख होने पर भी आधुनिक विज्ञान में आंइस्टीन के सिद्धान्त की प्रमुखता के कारण जैनों का भारहीनता का सिद्धान्त प्रचलित नहीं हुआ मगर अब भारहीनता का सिद्धान्त ज्यों-ज्यों वैज्ञानिक पुष्टि प्राप्त करता जाएगा जैन सिद्धान्त के कर्मवाद के कठिन अध्याय भी सरलता से समझे जा सकेगें। भारहीनता पर उपलब्ध जैन विद्या के अनेक प्रसंग आधुनिक विज्ञान के सन्दर्भ में उपयोगी है। कर्म-वर्गणाओं की भांति ही मन की वर्गणा, भाषा की वर्गणा भारहीन होती है। इसी कारण सूक्ष्म पदार्थ क्षण भर में लम्बी दूरी तय कर लेते हैं। जैनों के गति सम्बन्धी नियम विज्ञान के गति नियमों से भिन्न रहे हैं क्योंकि जैनों ने प्रकाश की गति से अधिक गति के कई उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। जैनों ने सूक्ष्म पदार्थ के सन्दर्भ में जितना विचार किया है उतना ही लोक और अलोक के बारे में किया है। इस सृष्टि को समझने के लिए जैनों ने केवल तारों की गति की ही जानकारी नही दी अपित ब्लैक हॉल - तमस्काय का वर्णन भी किया। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे जैन विद्वान सैद्धान्तिक स्तर पर आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व ही आइंस्टीन के सापेक्षवाद से, प्लांक के क्वाटम यांत्रिकी से तथा बिग-बैंग की धारणा से आगे निकल चुका था। जैन साहित्य में इस सृष्टि के आकार की, आकाश के विभिन्न आयामों की,