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________________ 22] [ जैन विद्या और विज्ञान । 3. कर्म-चेतना, कर्म फल चेतना और ज्ञान चेतना की दृष्टि से वह त्रिगुणात्मक है। उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य इस त्रिपदी से युक्त होने के कारण वह त्रिगुणात्मक है। इस प्रकार एक से दस तक के विभिन्न विकल्प प्रस्तुत किए हैं। इससे भी अधिक विकल्प हो सकते हैं क्योंकि एक और अनेक सापेक्ष है। ___ अनेकान्त दर्शन के प्रतिपादन में घटना को बुद्धिगम्य करने के लिए द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की सापेक्षता को आवश्यक माना गया है। अनेकान्त के अनुप्रयोग, समाज और राष्ट्र की समस्याओं को सुलझाने में सक्षम हैं। अनेकान्त दर्शन उदारता का परिचायक है। जैन दर्शन की अनेकांतिक मान्यता ने ही, अजैन को भी मोक्ष पाने का. अधिकार दिया है। धर्म संप्रदाय, किसी भी आत्मा को मोक्ष पाने के लिए बाधित नहीं करते, केवल अहिंसा और आत्म-धर्म का पालन मोक्ष के लिए आवश्यक है। इस सिद्धान्त ने अन्य धर्मों के प्रति गहरी सहिष्णुता का परिचय दिया है। अनेकान्त सिद्धान्त के समान ही जैनों ने अपरिग्रह का प्रभावी सिद्धान्त दिया है। संग्रह, पाप है। गृहस्थ को भी धन-संग्रह, सम्पत्ति संग्रह की सीमा करनी होती है। अमीर-गरीब का भेद, अपरिग्रह सिद्धान्त ही सिटा सकता है। लेकिन जैन अनुयायियों ने अपने जीवन में इस सिद्धान्त को कम महत्त्व दिया है। यह चिंतनीय है। जैन विज्ञान । प्रायः सभी धर्मो ने यह सार्थक प्रयत्न किया है कि उनके सिद्धान्तों के पालन से व्यक्ति को सुख और शांति मिले जिसकी सबको आवश्यकता है। जैन धर्म भी उनमें से एक है। जैन धर्म-साहित्य की विशेषता है कि उसने धर्म, दर्शन के अतिरिक्त विज्ञान को भी उतना ही महत्त्व दिया। बाह्य जगत को जानना उतना ही आवश्यक माना जितना कि अन्तर्-जगत को माना। पदार्थ के संबंध में जैन साहित्य में पुद्गल द्रव्य के अन्तर्गत विस्तार से विचार हुआ है। सूक्ष्म पदार्थ का भारहीनता संबंधी वर्णन हमें केवल जैन साहित्य में मिलता है। आज विज्ञान के समक्ष यह चुनौती है की वह फोटॉन, ग्रेविटॉन तथा ग्लूऑन की भारहीनता को कैसे स्थापित करे? यह आश्चर्य की बात है कि जैन साहित्य में सूक्ष्म पदार्थ के संबंध में जितना विस्तार से वर्णन हुआ है उतना अन्यत्र नहीं मिलता। अतः हम पाठकगण के लिए जैन विद्या और विज्ञान पर तीन भागों में चर्चा करेंगे। » प्रकृति का दर्शन » विज्ञान का दर्शन > विज्ञान का समाजशास्त्र।
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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