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________________ प्रेक्षाध्यान और रोग निदान] [301 संतुलन को प्रतिस्थापित करने वाले चार तथ्य हैं - 10 प्राणधारा का संतुलन। > जैविक संतुलन। » क्षमता की आस्था का जागरण। » दृष्टिकोण, व्यवहार और भावना का परिष्कार। इनका प्रतिफलन चार आयामों में होता है - » शारीरिक विकास > बौद्धिक विकास > मानसिक विकास » भावनात्मक विकास। जीवन विज्ञान को जीवन के परिष्कार की प्रक्रिया कहा है। पाठकों के लिए संतुलन के चार तथ्यों का शरीर शास्त्रीय दृष्टिकोण यहां प्रस्तुत करेंगे। 1. संतुलन के लिए पहला तथ्य है - प्राण धारा का संतुलन। प्राण के दो प्रवाह हैं - इडा और पिंमला। आज की शरीर शास्त्रीय दृष्टि से इसे सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम और पेरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम कहा जा सकता है। प्राण के इन दोनों प्रवाहों में संतुलन होना आवश्यक है। जब प्राण का दायां प्रवाह अधिक सक्रिय हो जाता है तो उद्दण्डता पनपती हैं, हिंसा और तोड़फोड़ की वृत्ति बढ़ती है। यदि प्राण का बायां प्रवाह सक्रिय होता है तो व्यक्ति में हीन भावना का विकास होता है, भय बढ़ता है, दुर्बलता आती है। दोनों का प्राण संतुलन संतुलित व्यक्तित्व का निर्माण करता है। 2. संतुलन का दूसरा तथ्य है - जैविक संतुलन। इसका अर्थ है . ग्रन्थियों का संतुलित स्राव। जब स्राव संतुलित होता है तो आदमी का बौद्धिक विकास होता है। 3. संतुलन का तीसरा तथ्य है - क्षमता की आस्था का जागरण। विज्ञान इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि मनुष्य के मस्तिष्क में अपार क्षमता है। इसके संतुलन से मानसिक विकास होता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि मनुष्य इस क्षमता का पांच-सात प्रतिशत का ही
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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