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[ जैन विद्या और विज्ञान
जीवन विज्ञान
आचार्य महाप्रज्ञ ने शिक्षा के क्षेत्र में जीवन विज्ञान के नए अध्याय को प्रारम्भ किया है। पाठकों के लिए यहां जीवन विज्ञान की धारणा और उसके प्रयोग की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत करेंगे। मनुष्य में विकास की तीन वृत्तियां M उपलब्ध हैं:
1. जिज्ञासा
2. बुभूषा 3. चिकीर्षा
मनुष्य में जिज्ञासा है। वह प्रतिदिन नए-नए तथ्य जानना चाहता है । उसमें भूषा है। वह कुछ होना चाहता है। वह अपने आपको बदलना चाहता है। वह जैसा है, वैसा ही रहना नहीं चाहता। उसमें चिकीर्षा है। वह कुछ करना चाहता है।
शिक्षा प्रत्येक विकास की अधिष्ठात्री रही है। शिक्षा का मूल अर्थ है, अभ्यास | आज यह अर्थ विस्मृत हो गया है। आज शिक्षा का अर्थ हैं, अध्ययन । अभ्यास दो प्रकार का होता है.
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1. ग्रहणात्मक अभ्यास
2. आसेवनात्मक अभ्यास
जानना शिक्षा है लेकिन जानना मात्र ही शिक्षा नहीं है। आसेवन भी शिक्षा है और यह शिक्षा का महत्त्वपूर्ण अंग है। जीवन विज्ञान आसेवनात्मक शिक्षा का विशिष्ट उपक्रम है।
संतुलन का अभिप्राय
जीवन विज्ञान की परिकल्पना यही है कि शिक्षा प्रणाली संतुलित हो । संतुलित का अभिप्राय है कि जैसे शारीरिक विकास और बौद्धिक विकास का प्रयत्न किया जा रहा है, वैसे ही प्रयत्न मानसिक विकास और भावनात्मकविकास के लिए भी प्रयत्न हो। ऐसा होने पर ही शिक्षा प्रणाली संतुलित हो सकेगी।