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________________ 302] [ जैन विद्या और विज्ञान उपयोग कर पाता है। जो दस प्रतिशत उपयोग करने लग जाता है वह महान व्यक्ति बन जाता है। 4. संतुलन का चौथा तथ्य है - परिष्कार । दृष्टिकोण का परिष्कार, व्यवहार का परिष्कार और भावना का परिष्कार । हमें यह जानना चाहिए कि इन तीनों का संचालक कौन है ? वैज्ञानिक खोजों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हाइपोथेलेमस तथा अतः स्रावी ग्रन्थियों का इन पर नियन्त्रण है अतः इनका परिष्कार आवश्यक है। यह मुख्य क्योंकि यह उपादान कारण है। परिस्थितियां भी हमारे दृष्टिकोण, व्यवहार तथा भाव को प्रभावित करती हैं। किंतु इनका स्थान पहला नहीं है, यह निमित्त मात्र है । परिष्कार का यह सूत्र ही मूल्यपरक शिक्षा है और यही जीवन विज्ञान है । आधार और प्रक्रिया आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार जीवन विज्ञान के आधारभूत चार तत्त्व हैं(1) शरीर (2) श्वास (3) वाणी (4) मन इन चारों तत्त्वों के सम्यक् संचालन के लिए चार प्रक्रियाएं प्रस्तावित की हैं। (1) श्वास दर्शन (2) शरीर दर्शन (3) कायोत्सर्ग (4) जागरूकता जीवन विज्ञान की प्रायोगिक बारह इकाइयां हैं. 1. ध्वनि 3. योगासन 5. कायोत्सर्ग 7. शरीर विज्ञान 9. मानसिक स्वास्थ्य 11. मूल्यपरक शिक्षा 2. संकल्प 4. सम्यक् श्वास 6. प्रेक्षाध्यान 8. स्वास्थ्य विज्ञान 10. भावनात्मक स्वास्थ्य 12. अहिंसा प्रशिक्षण
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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